पापियों का पाप बढ़ गया
हो गयी धरती भारी रे।
अब तो डम डम बजा दे डमरू
हे भोला भंडारी रे।।
धरम करम का सुख गया झरना
पाप समन्दर गहराया।
प्रेम प्यार की जरजर हालत
दिन ईमान भी मुरझाया।।
मात पिता की कौन कहे गुरू
संग भी करे गद्दारी रे।।
अब तो डम डम बजा दे डमरू
हे भोला भंडारी रे।
आंखे होकर अंधे बन गये
बहरे कानो से सारे।
मुर्शिद की आवाज नही
पहिचान सके हैं बेचारे।।
सांठ बरस खाँ पी कर सबने
उमर गवां दि सारी रे।।
अब तो डम डम बजा दे डमरू
हे भोला भंडारी रे।
जिन्दे बाप की खुशी न होती
मार के खाएं भंडारे।
छोड़ बादशाह, चाकर के संग
फिरते बन के बंजारे।।
पिता पुत्र और सती पति के
रिश्ते को दि गारी रे।।
अब तो डम डम बजा दे डमरू
हे भोला भंडारी रे।
गुरु बचन मिथ्या कर डाले
सन्त पंथ पर दाग लगा।
जग को चेला भक्ति दिखावे
करके गुरु के संग दगा।।
मर्यादा की हदें लांघ कर
मुश्किल कर लई भारी रे।।
अब तो डम डम बजा दे डमरू
हे भोला भंडारी रे।
मठ मंदिर में उलझ के रह गए
रंग बिरंगे घूम रहे।
हीरे पन्ने की दुकान पे
कंकर पत्थर चुम रहे।।
पाठ पढ़ाया था चेतन का
जड़ से ही कर ली यारी रे
अब तो डंम डंम बजा दे डमरू
हे भोला भंडारी रे
???? जयगुरूदेव ????
रचनाकार:- प्रेम देशमुख
जयगुरुदेव आवाज़ टीम