होय मत और किसी का मीत ।। 1 ।।
यही अब धारो हित कर चीत ।
बिना गुरु जानो सभी अनीत ।। 2 ।।
गुरु से लेना जा उन सीत ।
तजो सब कलमल रहो अजीत ।। 3 ।।
मार लो मन को यही पलीत।
सुरत में धरो शब्द की रीत ।। 4 ।।
चढ़ो तुम नभ में यह जग जीत ।
गहो अब संतन की यह नीत ।। 5 ।।
गुरु का नाम सम्हारो चीत ।
लगाओ छिन छिन उनसे प्रीत ।। 6 ।।
गायें सतगुरु स्वामी यह निज गीत ।
तजो सब छल बल ममता तीत ।। 7 ।।