और ना कोई तीन लोक में
बिना तुम्हारे हमारा।
अब मेरे अच्छे बुरे का
सारा भार तुम्हारा।।
कितना भी लो इम्तिहान गुरु
जो मर्जी में आये।
पर पहले ही अर्जी हैं मुझसे
उत्तीर्ण हुआँ ना जाये।।
मन क्रम बचन शुद्ध नही मेरे
तामस देह हमारी।
काम ना छुटे नाम ना उपजे
मन चित बुद्धि बिगरी।।
कलजुग जीव भये हम निर्बल
पेश ना चले हमारी।
कुछ बनने की नही अनुकूलता
बस एक आश तुम्हारी।।
ऐब पाप सब हम में भरे हैं
साधन किया ना जाये।
तेरे भरोषे नाव हैं भव में
तारे चाहे डुबाये।।
इस पे भी यदि इम्तिहान हो
कौन सहाय बनेगा।
कोई ना जाने किया तुम्हारा
कौन तुम्हे समझेगा।।
फिर भी जो हो मौज तुम्हारी
सोई करो गुरु प्यारे।
याद हमे हो एक तुम्हारी
और सबही को बिसारे।।
???? जयगुरूदेव ????
रचनाकार:- प्रेम देशमुख
जयगुरुदेव आवाज़ टीम