कुछ न कुछ कहना ही पड़ता है। आप अपनी वेदना समझो या मेरी वेदना समझो, तुम्हारे दुःख से मुझे भी तकलीफ है। परिवर्तन के लिए महान आत्माओं का एक जत्था पैदा हो गया है। उनमें से कोई बच्चा विदेश नहीं गया है, सभी विद्याध्यन कर रहे हैं। वे योगी, तपस्वी, त्यागी पवित्र आत्मायें हैं। काम तो वे जरूर करेंगे जब आ गऐ हैं। पहले सबको बता देना है।
पहले भी ऋषियों, मुनियों, महात्माओं ने पहले ही बता दिया था। सबको आवाज लगा दी थी। आद्यात्मिक योग में देखी बात झूठ नहीं होती। विश्वामित्र ने राम-लक्ष्मण को निकाल लिया था। ऐसे ही मैं भी उन वीरों को निकाल लूंगा। एक आवाज उठेगी कि तुम किधर छिपे हो ? वंशी बिगुल बजते ही कुदरती जागृती उनमें आ जाऐगी। फिर वे एक बारगी होश में आ जाऐंगे। आप चिन्ता मत करें, परिवर्तन होगा। आप सब लोग बुराईयों को छोड़ दो, अमानुषिक कार्यों को छोड़ दो। तकलीफें जो आएगी वह तो आपको देखना ही पड़ेगा। बाबा जी तो सब कुछ सुना रहे हैं, आप न समझें तो बाबा जी का क्या दोष ? बाबा जी तो अपना काम करेंगे। हमें चिंता नहीं। हम समझते हैं परिवर्तन जरूर होगा। मुझे कोई ख्वाहिश नहीं है। मुझे तो आप को रूहानियत का पाठ पढ़ाना है तुमने अपनी पद्धति को, खान-पान को, वेष-भूषा को बदल दिया। तुम अपनी पद्धति को अपना लो। व्यवस्था के लिए दो चीजें जरूरी हैं- कर्मवाद और धर्मवाद। कर्मवाद में चरित्र, न्याय, सेवा व त्याग है और धर्मवाद में आघ्यात्मिकता है। बाबा जी जानते हैं कि विकास कैसे होगा, शक्ति का संचार कैसे होगा। मुझसे आप मत डरो। सब लोग सहयोग दो। चाहे जैसे भी हो मदद करो। मैं कब चाहता हूं कि विनाश हो जाऐ। मेरी बातों को जन जन तक पहुंचा दो।
(शाकाहारी पत्रिका के सौजन्य से: 21 मार्च 1983)