खोज री पिया को निज घट में।
जो तुम पिया से मिलना चाहो। तो भटको मत जग में।।
तीरथ बर्त कर्म आचारा। ये अटकावे मग में।।
जब लग सतगुरु मिलें न पूरे। पड़े रहोगे अघ में।।
नाम सुधा रस कभी न पाओ। भरमो जोनी खग में।।
पंडित काजी भेख शेख सब।अटक रहे डग डग में।।
यह तो भूले विषय बास में। भर्म धसे इनकी रग रग में।।
इनके संग पिया नहिं मिलना। पिया मिले कोइ साध समग में।
बिना संत कोई भेद न पावे। वे तोहि कहें अलग में।।
जब लग संत मिलें नहिं तुम को। खाय ठगौरी तू इन ठग में।।
सतगुरु पूरे सरन गहो तो। रलो जोत जगमग में।।