ऐसी कोई मौत नही जग में
मजबूर तुझे जो कर जाये।
मरते को जिलाने वाले तुम
ऐसे कैसे फिर मर जाये।।
नादां है समझते जो ऐसा
अज्ञान में डूबे हैं सारे।
मन डावा डोल रहे उनका
तुम्हे छोड़ के दूजे दर जाए।।
जो आम समझते अनामी को
इंसान समझते हैं तुमको।
उन्हें जनम मरण सहना होगा
कोई युक्ति नही के तर जाये।।
जो मौज ना तेरी पहचाने
वचनों को जो ना समझ पाये।
पाषाण हृदय वाले है वो
तेरे होने पे शक कर जाए।।
जिस काम की खातिर तुम आये
जिस परिवर्तन की बात कही।
ऐसा कोई त्रिलोकी में नही
जो काम तेरा वो कर जाये।।
तुमने ही कहा था श्रीमुख से
के सतयुग देख के जाऊँगा।
तो फिर ऐसा हो सकता नही
के वचनों से अपने मुकर जाये।।
उनको क्या कमी हैं शरीरों की
नही स्वांस की कोई सीमा हैं।
गर एक छोड़ भी एक दिया तन तो
दूसरा तन धारण कर आये।।
अब भी हैं समय मत चूकों तुम
सब एक निशाने पर आओ।
सुन कर पुकार निज जीवो की
निश्चय ही गुरु चल के आये।।
ऐसी कोई मौत नही जग में
मजबूर उन्हे जो कर जाये
???? जयगुरूदेव ????
रचनाकार:- प्रेम देशमुख
जयगुरुदेव आवाज़ टीम