जयगुरुदेव आरती लाई।
सतगुरु के सत्संग गंग में प्रथमई जाय नहाई।
चीर पुरान त्यागि कर्मन की श्वेत चुनर पहिराई।
मैली चुनर त्याग कर्मन की लखि निज मनहिं लजाई।
जयगुरुदेव चुनर जिन धोयो उनको देत बधाई।
ज्योति निरंजन सहस कमल दल, शोभा पड़ी दिखाई।
आगे दर्शन करति ब्रह्मपद, गुरु पद पदुम जगाई।
पार ब्रह्म और महासुन्न तजि भंवर पार गति पाई।
सतनाम की करति आरती सुरत सतगति पाई।
अलख अगम की आरती करती सतगुरु कंज समाई।