जहाँ जहाँ भी चरण तुम्हारे
झुके वहाँ पर ये मेरा सर है।
जहाँ ना तेरे कदम पड़े हो
ना जाऊ वो स्वर्ग भी अगर है।।
मेरा तो सब कुछ तुम्ही हो गुरुवर।
ना दाता कोई दाता हैं तुमसे बढ़कर।
तुम्ही से हर आरजू हैं मेरी।
तुम्हारे चरणों मे मेरा घर हैं।।
कभी ना कम हो बिछड़ने का दुःख।
इसे में मिलने लगा मुझे सुख।।
सदा रहे बढ़ता दर्द मेरा
हो चाक चाहे मेरा जिगर हैं।।
कितना बड़ा भी जहां का सुख हो।
मैं कैसे ले ली तुमसे बिमुख हो।।
मैं आत्मा हूँ तुम्हारी स्वामी।
ये नाता अपना अजर अमर हैं।।
जहाँ की भिड़ों में मैं ना जाऊ।
तुम्हे हमेशा ही करीब पाऊँ।।
किसी का मैं आसरा ना चाहूँ।
तुम्ही प्रकट हो ये मेरा ऊर हैं।।
तुम्हारे दर का रहूँ भिखारी।
तुम्हारा दर मन्ज़िले हमारी।।
पड़ा रह मैं सदा यही पर।
ना भेजना कोई और दर हैं।।
जहाँ जहाँ भी कदम तुम्हारे।
झुकें वहां पर ये मेरा सर है।।
???? जयगुरूदेव ????
रचनाकार:- प्रेम देशमुख
जयगुरुदेव आवाज़ टीम