अब तो जो कुछ भी है वह सब खेल खेलना है चाहे नेकनामी दुनियां में हो या बदनामी हो। जो प्रेमी भक्त महात्माओं की संगत में आकर बदनामी का सामान उठाते हैं उन्हीं का नाम दुनियां में अजर और अमर होता है। जो लोग नेकनामी ही नेकनामी चाहते हैं वह महात्माओं के साथ एक कदम भी नहीं चल सकते हैं। महात्मताओं के साथ कदम रखते ही बदनामी ही बदनामी है। लेकिन जब असलियत का पाठ पढ़ लेते हैं तो सदा नेकनामी ही नेकनामी रहेगी।
भाई आप नाचने निकले हो तो आंगन टेढ़ा कैसा ? कोई कहेगा कि महात्मा जी औरत को भगा ले गऐ, कोई कहेगा कि लड़कियों को भगा ले गऐ, कोई कहेगा कि राजनीति में चले गऐ। तुम तो नाचने के लिए निकले हो तो जो होगा सो होगा। अगर तुम्हें नाचना आता है तो आंगन टेढ़ा नहीं है। तुम्हें नाचना असल में आता ही नहीं इसलिए तुम भ्रमित हो जाते हो और कहते हो कि आंगन टेढ़ा है। महात्माओं की संगत में आ गऐ हो तो जैसा वे कहें नाचना पड़ेगा। महात्माओं की संगत सोहबत का असर है वह सीधा है टेढ़ा नहीं। पर तुम्हें नाचना नहीं आऐगा तो तुम भी कहोगे कि टेढ़ा है। अब तो तानें हों, निन्दा हो, मान हो अपमान हो वह सब आपको बर्दाश्त करना ही होगा। बर्दाश्त नहीं करोगे तो ‘‘होय जगत में हांसी’’।
(शाकाहारी पत्रिका के सौजन्य से: 7 अक्टूबर 1980)