तुम न आये गुरुजी, सुबह हो गई।
मेरी पूजा की थाली सजी रह गई।।
भोग रक्खा रहा, फूल मुरझा गए।
आरती थी जली की जली रह गई।।
क्या बुलाने में कोई कमी रह गई।
तुम न आये गुरुजी सुबह हो गई।।
हमसे रूठे हो क्यों, आप आते नहीं।
कोई अपराध मेरा, बताते नहीं।।
टेरते-टेरते सांस रुकने लगी,
तुम न आये गुरुजी सुबह हो गई।।
हाल बेहाल है अब तो आओ गुरु।
मन में मनको की माला पहनाओ गुरू।।
वरना ये दाना दाना विखर जाएगा।
टूटकर मोतियों की लड़ी रह गई।
तुम न आये गुरुजी सुबह हो गई।।
ज्ञान भी हो गया ध्यान भी हो गया।
फिर भी दर्शन की इच्छा बनी रह गई।।
इतना होते हुए मैं समझ न सकी।
कौनसी भावना में कमी रह गई।।
मैने रो-रो के तुमको पुकारा गुरु।
तुम हो दाता मेरे मैं भिखारन तेरी।।
तेरी मूरत को मन मे बसाये हूँ।
तेरे दर पे खड़ी की खड़ी रह गई।।
तुम न आये गुरुजी सुबह हो गई।।
अपनी दासी को दर्शन दिखा दो गुरु।
सामने आ कर फिर से मुस्कुरा दो गुरु।।
राह कब से निहारूँ तुम्हारी गुरु।
अब लगी आँसुओं की झड़ी रह गई।।
तुम न आये गुरुजी सुबह हो गई।।