जनम मरण के बाहर स्वामी
विश्व जगाने आये हैं।
तुम ही कहा करते थे ऐसा
अब खुद क्यो भरमाये हैं।।
तुम ही प्रचार किया करते थे
नाम नही ये इंसाँ का,
तुम ही दीवार लिखा करते थे
काम नही ये इंसाँ का,
नाम काम दोनों ही तुमने
जब भगवान का बोला हैं
फिर क्यु बुद्धि बहक गयी हैं
फिर क्यों ये मन डोला हैं
किसने तुमको भरमाया हैं
क्यो ऐसे चकराये हैं
तुम ही कहा करते थे ऐसा
अब खुद क्यो भरमाये हैं।।
तुम ही कहा करते थे गुरु ने
नाम जहाज लगाया हैं
तुम ही कहा करते थे हमने
पूरे गुरु को पाया हैं
कहां गयी पूरे की पूर्णता
अब क्या जवाब बताओगे
राह रोक कर पूछेगा जग
तब क्या जनाब सुनाओगे
देखो सामने जग वालो ने
कितने सवाल उठाए हैं
तुम ही कहा करते थे ऐसा
अब खुद क्यो भरमाये हैं।।
तुम ही कहा करते थे गुरु के
सन्मुख काल भी डरता हैं
जो इतना समरथ होता हैं
तो वो क्या ऐसे मरता हैं
काल बड़ा या दयाल बड़ा हैं
कोई मुझे भी समझाओ
जो ये बात बता सकता हैं
हाथ उठा के दिखलाओ
छोड़ के दामन समझ बुझ का
क्यो नादानी लाये हैं
तुम ही कहा करते थे ऐसा
अब खुद क्यो भरमाये हैं।।
तुम ही कहा करते थे कल तक
सबसे बड़ा गुरू मेरा हैं
मेरे गुरु का सबसे ऊपर
धाम अनाम बसेरा हैं
जनम मरण से मुक्त कराने
जीव ले जाने आये हैं
जीव जहां के तहाँ पड़े और
गुरु निजधाम सिधाए हैं
क्या ऐसा भी हो सकता हैं
जरा बिचार न लाये हैं
तुम ही कहा करते थे ऐसा
अब खुद क्यो भरमाये हैं।।
तुम ही जिन वचनों वादों को
घूम घूम बतलाते थे
जिनके आगे जा जा करके
प्रेम पियार जताते थे
क्या वो सब था फरेब तुम्हारा
ये आदर्श बनाओगे
जब वो सामने आ जाएंगे
तो क्या मुँह दिखलाओगे
जो हैं अपना परम् हितैसी
उसको ही बिसराये हैं
तुम ही कहा करते थे ऐसा
अब खुद क्यो भरमाये हैं।।
???? जयगुरूदेव ????
रचनाकार:- प्रेम देशमुख
जयगुरुदेव आवाज़ टीम