इस समय माटर, महल, बड़ी बड़ी मशीनें, इन्द्रिय भोंगों के साज सामान, नाना प्रकार के सिनेमा संगीतों में, नाच गानों में, शराब में मनुष्य अपने को सराबोर करे डाल रहा है पर उसे कहीं भी शांति नहीं मिल पा रही है। उसका मन रोग, कष्ट, तमाम किस्म के अभाव व कमी से चिन्तित रहता है। आक्षिर ऐसा क्यों है?
बड़ा ही व्यापक प्रश्न है। पाश्चात्य देशों के बड़े बड़े पूंजीपति आज अपना धन दौलत छोड़कर भारत भागे आ रहे है इस शान्ति को पाने के लिए। दौलत ने उन्हें शान्ति नहीं दी। इन्द्रिय में डूबे वे पश्चिम देशों के प्रबुद्ध जन भारत की तरफ आंखे उठाऐ देख रहे हैं कि शान्ति का मार्ग यह देश दिखा दे।विश्व के हर राष्ट्र, देश के बड़े बड़े भविष्य वक्ताओं ने यह कह दिया है कि आज की अशान्ति से छुटकारा दिलाने का मार्ग अब भारतवर्ष ही बताऐगा।
बात तो सब ठीक कह रहे हैं। भारत ने सदा ही विश्व का मार्गदर्शन किया और शान्ति मार्ग दिखाया है। जब जब कोहराम मचा, चैन हराम हूआ तो यहां के महात्मा ही शान्ति का सन्देश सामने लाऐ। यू तो सन्त जन सदा ही भारत भूमि पर विराजमान रहते हैं पर ज्यादा आकांक्षा जनता की उठती है तब वे सामने आते हैं। तो अब उनके सामने आने का और सत्मार्ग बाताने का समय आ गया है। वे अपना कार्य कर भी रहे हैं पर अभी तक जन साधारण को उसका आभास नहीं हो रहा है। पर प्रकृति ने आग लगा दी है। जैसे जंगल में चारों तरफ से आग लग जाऐ और एक तरफ ही मार्ग खुला रह जाऐ उसी प्रकार की स्थिती आज हो गई है। महात्माओं के पास जाकर मार्ग पूछने के सिवाय और कोई चारा नहीं रह गया है।
(शाकाहारी पत्रिका के सौजन्य से: 7 सितम्बर 1982)