भूमि वही हैं गगन वही हैं
प्रेम का पड़ा आकाल हैं
मन हैं मैला भाव विषैला
षडयंत्रो का जाल हैं।
सच्चाई कहने वालों का
कौन करे अहवाल हैं
गज़नवी गौरी कंस शकुनि
मक्कारों की कमाल हैं।
भीड़ में भिड़ते भड़कावे में
खोजा करते दयाल हैं
जोर जुगत से जतन लगा के
ख़ुदा बने चांडाल हैं।
प्रेमियों को स्वप्न दिखा के
महाराजे चलते चाल हैं
खड्ग पता ना कहां छोड़ दी
शेष बची बस ढाल हैं।
खैर करो थोड़े दिन की जब
होगी बड़ी पड़ताल हैं
कौन नमक की करी हरामी
कौन सा नमक हलाल हैं
उधड़ जाएगी मोटी चर्बी
उतर जाएगी खाल हैं
राज खत्म नही हुआँ गुरु का
ये छोटा सा अंतराल हैं।
???? जयगुरूदेव ????
रचनाकार:- प्रेम देशमुख
जयगुरुदेव आवाज़ टीम