देश में जो भी संस्थाऐं काम कर रही हैं यदि वे एक दूसरे की जनमत विरोधी नारे लगाऐगीं और दसरे की बुराई करेगी तो यह समझा जाऐगा कि ऐसी संस्थाऐं लोकतांत्रिक जनमत की सेवा नहीं कर सकतीं। वे जन समूह को लड़ाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहती हैं, करोड़ों नर नारियों की आंखों में धूल झोंक कर सब माल अपना कर लेना चाहती हैं और देश की जनमत को विरोधी तत्वों में पालना चाहती है।
देश का अपना पहनावा हो, एक देशीय भाषा जिसे जनसमूह साधारण जानता हो, देश की साधारण जनमत भाषा से जनमत का प्रेम-गठन मत एक होगा। देश एक शक्ति समूह में रहेगा। कोई विदेशी हमारे गठित जनमत समूह पर अकारण हमला नहीं करेगा। देश के जनमत समूह को एक सूत्र में धर्म आधार पर महात्मा सदा बांधे रहे। जब महान भाव की कमी हुई तभी जनमत अनेक कमियों और दुःख, दुश्मनियों का भण्डार बन जाता रहा तथा हमारे चन्द कमजोरियों से हमें चकमा देकर कुछ लोग लाभ उठाते रहे और हम ज्यों के त्यों दुःखी रहे बल्कि हमारा धर्म, ईमान, चरित्र सब छिन लिया गया और कमियां हमें आज भी पीड़ित कर रहीं हैं। अब तो आपको हमारी बात सूनना होगा। बिना सुने नर-नारियों का दुःख कदापि नहीं जाऐगा।
(शाकाहारी पत्रिका के सौजन्य से: 28 मई 1980)