एक बार स्वामी जी महाराज बबराला गये जो जिला बँदायू मेँ पङता है । उन दिनोँ आर. बी. लाल साहब कस्टम एंड सेँट्रल एक्साइज मेँ इंसपेक्टर थे । उनके मकान पर स्वामी जी रुके थे । दोपहर मेँ स्वामी जी के साथ मैँ छत पर बैठा था । इतने मेँ दो चार बंदर आकर किनारे बैठ गये । स्वामी जी उनको देखते रहे फिर मुझसे बोले कि नीँचे जाकर इनके लिए कुछ खाने को ले आओ । एक झोले मेँ भूने चने रखे थे जिसे बहन जी ने मुझे दिया और मैने उसे लाकर स्वामी जी को दे दिया । स्वामी जी ने झोले से एक मुट्ठी चना निकाला और एक बंदर की तरफ दिखा कर बोले कि ले । वो बंदर कुछ देर तक तो स्वामी जी को देखता रहा फिर धीरे धीरे पास आया । स्वामी जी की मुट्ठी से उसने कुछ दाने निकालकर खाये फिर धीरे से स्वामी जी ने मुट्ठी बंद कर ली । फिर बंदर स्वामी जी की मुट्ठी खोलने लगा और स्वामी जी की तरफ देख कर कुछ कहता । मैँ डर गया कि कहीँ बंदर स्वामी जी को काट न ले । मेरा दिल धक धक कर रहा था । मैँने सोचा कि एक डंडा ले आऊँ । इतने मेँ स्वामी जी ने कहा कि चुपचाप बैठे रहो वर्ना ये सब तुमको काट लेँगे । इतनी देर मेँ 30-40 बंदर सभी छत पर आ गये । स्वामी जी एक-एक को बुलाते और मुट्ठी से वो चना लेकर हट जाता था ।फिर स्वामी जी दूसरे को बुलाते कि आ-आ । वो आता और चना लेकर चला जाता । किसी-किसी बंदर के साथ स्वामी जी खेल भी करते । जब कोई बंदर ज्यादा खाने लगता तो मुट्ठी बंद कर लेते । फिर वो गिङगिङाता । एक मौका और उसे देखकर देते और मुट्ठी खोल देते । खुश होकर वह जल्दी-जल्दी चना मुँह मेँ भरता और हट जाता । फिर स्वामी जी महाराज दूसरे को बुलाते । इस प्रकार स्वामी जी ने सारे बंदरो को एक-एक करके चना खिलाया । स्वामी जी के हाथ को बंदर अपने एक हाथ से पकङते और दूसरे हाथ से चना खाते थे । उस झोले मेँ चना जितना रहा हो लेकिन 30-40 बंदरो को खिलाने मेँ वह पुरा पङ गया और सभी बंदर चना खाकर तृप्त हो गये । मैँ भी भाव-विभोर होकर इस दृश्य को देखता रहा और सोचता रहा कि ये बंदर कितने भाग्यशाली हैँ जिन्हे मालिक स्वयं खिला रहे हैँ । मुझे वे पंक्तियाँ याद आने लगी…’काग के भाग बङे सजनी,हरि हाथ से ले गयो माखन रोटी’ । कागभुशुन्डि भगवान राम के हाथोँ से रोटी लेकर जो भी फल प्राप्त किया हो, लेकिन स्वामी जी के हाथोँ को स्पर्श करके ईश्वरीय विधान के अनुसार सभी बंदर अपने अगले जन्म मेँ नर-तन पाने का अधिकारी है और उसकी चौरासी कट जाती है अर्थात चौरासी लाख योनियोँ मेँ उसके जन्म करम का चक्कर समाप्त हो जाता है और अगला जन्म उसको मनुष्य का मिलता है । इस ईश्वरीय विधान की बात स्वामी जी महाराज ने सत्संग मेँ सुनाया है ।
(“साभार”-आर.के.पांडेय,लखनऊ)