रे मन धीरज क्यों न धरे ।
एक सहस्त्र नौ सौ के ऊपर ऐसो योग परे ।
शुक्ल जयनाम संवत्सर, छट सोमवार परे ।
हलधर पूत पवार घर उपजे, देहरी छत्र धरे ।
मलेच्छ राज्य की सगरी सेना, आप ही आप मरे ।
सूर सबहि अनहोनी होइहै, जग में अकाल परे ।
हिंदू मुगल तुरक सब नाशै, कीट पतंग जरे ।
सौ पे शुन्न (शून्य) के भीतर, आगे योग परे ।
मेघनाद रावण का बेटा, सो पुनि जन्म धरे ।
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण, चहुँ दिशि काल फिरे ।
अकाल मृत्यु जग माहीं ब्यापै, परजा बहुत मरे ।
दुष्ट दुष्ट को ऐसा काटे, जैसे कीट जरे ।
एक सहस्त्र नौ सौ के ऊपर, ऐसा योग परे ।
सहस्त्र वर्ष लों सतयुग बीते, धर्म की बेल बढ़े ।
स्वर्ण फूल पृथ्वी पर फूले, पुनि जग दशा फिरे ।
सूरदास यह हरि की लीला, टारे नाहिं टरे ।
संवत दो हजार के ऊपर छप्पन वर्ष चढ़े ।
माघ मास संवत्सर व्यापे, सावन ग्रहण परे ।
उड़ि विमान अम्बर में जावे, गृह गृह युद्ध करे ।
मारूत विष फेंके जग माहिं, परजा बहुत मरे ।
द्वादस कोस शिखा हो जाकी, कंठ सूं तेज भरे ।
सूरदास होनी सो होई, काहे को सोच करे ।
संवत दो हजार के ऊपर छप्पन वर्ष चढ़े ।
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण, चहुं दिस काल फिरे ।
अकाल मृत्यु जग माहिं व्यापै, परजा बहुत मरे ।
सहस्त्र वर्ष लगि सतयुग व्यापै, सुख की दशा फिरे ।
स्वर्ण फूल बन पृथ्वी फूले, धर्म की बेल बढ़े ।
काल ब्याल से वही बचे, जो गुरु का ध्यान धरे ।
सूरदास हरि की यह लीला, टारे नाहिं टरे ।