तेरी महिमा मैं क्या जानू।
तेरा किया कैसे पहचानूं।।
इतना नही हैं ज्ञान।
मैं नादान मैं अनजान।।
कभी भरोषा तुझपे आये।
कभी डोल मेरा मन जाये।।
रहे ना एक समान।
मैं नादान मैं अनजान।।
कब तक धीर बंधाऊ खुद को।
रास न कोई आये मुझको।।
सारा जगत वीरान।
मैं नादान मैं अनजान।।
बेबस हाथ कुछ मेरे।
खुद को सौंपा चरण में तेरे।।
अब मेरी तू जान।
मैं नादान मैं अनजान।।
ऐसा कोई जतन बतादो।
जिससे तुम प्रसन्न हो जाओ।।
मैं जाऊ कुर्बान।
मैं नादान मैं अनजान।।
प्रेम विरह और तडफ़ जगादो।
लोक लाज का भूत भगादो।।
समता का दो दान।
मैं नादान मैं अनजान।।
सब समरथ हो मालिक कुल के।
समरथता को बैठे भूल के।।
कुछ तो लाओ ध्यान।
मैं नादान मैं अनजान।।
अब तो करदो घट उजियारा।
निराकार हो जा साकारा।।
सब हो जाय समान।
मैं नादान मैं अनजान।।
???? जयगुरूदेव ????
रचनाकार:- प्रेम देशमुख
जयगुरुदेव आवाज़ टीम