मैं कोई ऐसा आदेश नहीं दिया करता हूं जो आपकी क्षमता में न हो। मैं तो वही आदेश देता हूं जो आप कर सको। लौकिक हो या पारलौकिक दोनों तरफ आपकी क्षमता के अनुसार ही आदेश दिऐ जाते हैं। बोलने में, साधना में उतना ही कहता हूं जितना तुम कर सको। मैंने साधना के लिए 10 मिनट, 15 मिनट, 20 मिनट और आधा घण्टा भी रखा है। मैं तो चाहता हूं इधर भी आपकी उन्नती हो और उधर भी आपकी उन्नती हो। आपको क्षणिक सुख लेना है और आध्यात्मिक आनन्द भी लेना है। मुझे कभी दुःख होता है कि लोग मेरा इशारा नहीं समझते हैं। पहले मैं स्पष्ट कह दिया करता था तो लोग समझते थे कि मैं उनका अनिष्ट चाहता हूं। मैं किसी का अनिष्ट नहीं चाहता सबकी भलाई चाहता हूं। मेरे पास मथुरा में सभी लोग मिलने गऐ पर मेरी बातों को नहीं समझा तो मेरा क्या दोष ? आप महात्माओं की बातों को नहीं समझ सकते हो तो वह क्या करें ? बहुत से लोगों ने समझ लिया कि बाबा जी अब साधना की बात और ध्यान-भजन की बात नहीं करेंगे। आपने यह नहीं सोचा कि बाबा जी कौन सा खेल खेलते हैं हमारे लिए ? आप साधना करो दूरदर्शी ऊपर की आवाज है। जब हमने कहा था कि 11-11 की टोलियां बनाओ तो आपके पास समय नहीं था। मैंने फिर प्रार्थना की। दूरदर्शी शब्द की स्थापना हुई। पूजा उनकी होगी जिन्होंने दूरदर्शी का पैगाम घरों घरों में पहुंचा दिया। सत्तर प्रतिशत जो गांव गांव में बैठे हैं वह दूरदर्शी हैं। तुमने क्या कहा कि मेरी दस साल की साधना खत्म हो गई , मेरी बीस साल की साधना नष्ट हो गई। अरे मूर्खों तुम्हारी साधना को कौन ले सकता था ? कूड़े-कचड़े की भी कीमत होगी पर तुमने महात्माओं को वह कीमत भी नहीं दी। मैं उनको धन्यवाद देता हूं जो पैदल घूम घूम कर नर-नारियों में दूरदर्शी का प्रचार किया। दूरदर्शी कोई लूट, कोई धाखा है ? यह एक काम है। कुछ ही दिनों मंे दूरदर्शी की पुकार चारों तरफ से होने लगेगी। जो आपको आदेश मिला वह आपके हद के अन्दर होगा और आपके हित का और आपके कल्याण का होगा।
(शाकाहारी पत्रिका के सौजन्य से: 14 अगस्त 1980)