अलख अगम अपार प्रभु
गुरुवर दया निधान
सदा सहज मोहे प्राप्त हो
तुम चरनन स्थान
भूल चूक ग़लती गुनाह
भला बुरा नही ज्ञान
सदा समझ निज दास मोहे
ख़ता ना लाना ध्यान
जब से हो गयी दया तुम्हारी
हर्ष बचा ना शोक मेरा
तेरे चरण में ही सारे मंडल
तू ही स्वयं सतलोक मेरा
तुम बिन जाना कहि न चाहूँ
तेरी पनाह ही मोक्ष मेरा
हो के अलग फिर भी हु तुझीमे
तू परोक्ष अपरोक्ष मेरा
बने तो तुझ से ही बने
बिगड़े तो भी हैं मौज तेरी
तेरी रज़ा में राजी रहूँ मैं
यही आश हर रोज मेरी
???? जयगुरूदेव ????
रचनाकार:- प्रेम देशमुख
जयगुरुदेव आवाज़ टीम