सवाल
बाबा जी जो दुनियां हम देखते हैं और यहाँ कर्म करते हैं फिर यहाँ दुख-सुख भी पाते हैं। लोग कहते हैं कि यहीं सब कुछ है, स्वर्ग-नर्क सब यहीं है और यहीं हमें सब भोगना पड़ता है। तो क्या इसके अतिरिक्त कोई लोक या स्वर्ग-नर्क नहीं है ?
जवाब
हमारे मानने या न मानने से कोई फर्क नहीं पड़ता। दवी-देवता हैं, यक्ष, किन्नर, गन्धर्व हैं इन सबके लोक हैं। वो इन चर्म आँखों से नहीं देखे जा सकते क्योंकि पाँच तत्व के शरीर की सीमा इसी सृष्टि तक है। दैविक सृष्टि देखने के लिए इस शरीर से निकलना होगा अर्थात जीते जी मरना होगा। वैसे भी एक पुरानी कहावत है कि स्वर्ग देखना है तो मरना तो पड़ेगा ही। मतलब यह है कि उस सृष्टि को देखने के लिए साधना करनी पड़ेती है, जीते जी मरना की साधना। उस साधना को सीखने के लिए ही सच्चे सतगुरू की जरूरत होती है। वैसे तो हतने सारी दुनियां भी नहीं देखी। इसके माने यह तो नहीं कि हमारा देश या हमारा शहर छोड़कर कुछ नहीं। मैं आपको एक बात बताऊँ। एक बार स्वामी जी महाराज के पास एक जाने-माने नेता मिलने आऐ। नेता जी अमेरिका से वापस आऐ थे और वहाँ की तारीफों के पुल बाँधे हुऐ थे। स्वामी जी महाराज चुपचाप सुनते रहे फिर पूछा अमेरिका की किसी खास जगह का नाम लेकर कि आप ने वह जगह देखी ? वो बोले कि वहाँ तो नहीं जा सका। फिर स्वामी जी महाराज ने कहा कि यदि वह नहीं देखा तो क्या अमेरिका गऐ। उन्होंने अचम्भित होकर पूछा कि महाराज जी आप अमेरिका हो आऐ हैं क्या ? स्वामी जी महाराज ने हंसते हुऐ कहा कि नहीं। वैसे वो जगह बहुत अच्छी है देखने लायक। मतलब यह कि ऐसे ही देव लोक हैं, स्वर्ग हैं, बैकुण्ठ है, ब्रह्माण्ड हैं जिन्हें हम नहीं देख सकते और उसे नकार देते हैं। सब कुछ इसी धरती को माने बैठे हैं। इसका एक कारण यह भी है कि हमारी सोच विदेशियों से ज्यादा प्रभावित हो गई है। वो जिसको कहते हैं कि हाँ तो हम कहते हैं हाँ। अपने संतों-महात्माओं के आध्यात्मिक ज्ञान को हम कल्पना समझते हैं।
जयगुरुदेव