परम पूज्य संत बाबा जय गुरु देव जी महाराज

!! जय गुरुदेव नाम प्रभु का !! बाबा जी का कहना है, शाकाहारी रहना है, कलियुग जा रहा है, सतयुग आ रहा है

सत्संग जल
महात्मा कहते हैं कि:-

सत्संग जल जो कोई पावे,
मैलाई सब कट कट जावे।

मानव शरीर इस सृष्टि की श्रेष्ठ रचना है। इस पृथ्वी पर चैरासी लाख योनियों में से केवल मनुष्य ही परमात्मा से मिलने की योग्यता और शक्ति रखता है। पशुओं, पक्षियों, पेड़-पौधों या और दूसरे निचले स्तर के प्राणियों को परमात्मा की प्राप्ति का ज्ञान नहीं हो सकता। जीवात्मा जो कि चेतन है, अमर है इन सभी योनियों में कर्मानुसार चक्कर लगाती रहती है। मनुष्य जीवन के गिनती के दिन ही वो अवसर हैं जब कि परमात्मा की खोज की जा सकती है। इस खोज के लिए मनुष्य को कहीं बाहर नहीं जाना पड़ता। हमारा शरीर ही वह प्रयोगशाला है जिसके अन्दर जाकर यह खोज की जा सकती है। परमात्मा को हमें अपने खुद के अन्दर ही ढूंढना है। खुदा की बादशाहत हमारे अन्दर ही है। हमारा शरीर ही वह मन्दिर है जिसमें परमात्मा रहता है और इसी में उसकी तलाश करनी चाहिऐ।

खुदा की बादशाहत में प्रवेश पाने के लिए हमें एक रास्ता दिखाने वाले की जरूरत है। बिना किसी अनुभवी मल्लाह की सहायता के रूहानियत के अनजान अथाह समुद्रों को पार नहीं किया जा सकता। हमारी आत्मा परमात्मा रूपी सागर की एक बूंद है, उस परम चेतन सूर्य की एक किरण है लेकिन मन और माया के सम्पर्क में आकर इतनी मैली हो गई है कि इसे अपने मूल का कोई ज्ञान ही नहीं रहा और यह भूल गई कि यह परमात्मा की एक अंश है। सृष्टि की शुरूआत से ही हम परमात्मा से बिछुड़े हुऐ हैं और संसार के भंवर जाल में चक्कर खा रहे हैं। स्थूल, लिंग, सूक्ष्म और कारण शरीरों के काले पर्दों ने आत्मा के असली प्रकाश को धुंधला कर दिया है। सतगुरू हमंे इन पर्दों को हटाने का मार्ग बताते हैं। साधना यानी ध्यान-भजन के द्वारा जब पर्दे हट जाते है तब आत्मा अपने निज प्रकाश में चमकने दमकने लगती है और अपने सच्चे देश की तरफ चढ़ाई आरम्भ कर देती है। जीवात्मा का अपना सच्चा देश सतलोक है। यह कार्य केवल मनुष्य जन्म में ही सम्भव है।

इन्सान परमात्मा का चलता फिरता मन्दिर है और एक पहुँचा हुआ पूरा गुरू ही हमें इस मन्दिर में प्रवेश करने का रास्ता बता सकता है। वह इस मन्दिर की कुंजी देता है और उस कुंजी से जिज्ञासु अथवा साधक दरवाजा खोलकर अन्दर जाता है। सारा संसार सच्चे और स्थायी आनन्द की खोज में है लेकिन संसार और उसकी वस्तुओं में किसी को भी वह सच्चा सुख नहीं मिला। परम शान्ति, सच्चा सुख या परम आनन्द तो तभी मिल सकता है जब मनुष्य इस मुक्ति द्वार में प्रवेश करके परमात्मा से जा मिले और अविनाशी देश में पहुँच जाऐ जो सारी जीवात्माओं का अपना घर है।