जब मन दुनियां से उचाट हो जाऐ, चीजों में अभाव आ जाऐ तो समझना चाहिऐ कि गुरू की दया हो रही है और होने वाली है तो तुरन्त भजन पर बैठ जाना चाहिऐ। दया के उस ज्वार भाटे में मन आ गया तो खिंचाव हो जाऐगा। जिन लोगों ने प्रभु को प्राप्त किया उन्होंने महात्माओं के पास जाकर अपना सबकुछ समर्पण कर दिया। गुरू भक्ति से विकार निकल जाते हैं, सुरत की सहयोगी सखियां शील, क्षमा, संतोष, विरह, विवेक आ जाती हैं।
न्याय का मतलब यह है कि उससे कहो कि तुम सच सच सब कुछ बता दो तो हम तुम्हें छोड़ देंगे कोई सजा नहीं देंगे। उसने सच सच अपने सारे गुनाह कबूल कर लिए फिर उसे छोड़ दिया। उसे कोई सजा नहीं दी। इससे उसको धक्का लगेगा कि हमने अपना अपराध कबूल किया फिर भी हमें क्षमा कर दिया गया। वह अपने को सुधारेगा। कहा जाता है कि सूम का धन शैतान खाय। ये कहावत है। यह पक्की बात है।
यह मन भजन में भक्ति भाव में भागता रहता है। जब यह आज्ञा का पालन करता रहेगा तो स्थिर होगा। अपने प्रारब्ध पर विश्वास करो। दुनियां के काम उतने ही करो जितना जरूरी है। तुम्हारा प्रारब्ध तुम्हारे साथ है। तुम चाहे जहां भी रहोगे आखिरी स्वांस तक प्रारब्ध में जो है वह मिलेगा।