परम पूज्य स्वामी जी महाराज ने कहा कि जाड़े का समय भजन के लिए अच्छा होता है। स्वामी जी महाराज कहा करते थे कि आठ महीने की जाग्रती चार महीने में कर लेनी चाहिऐ। क्योंकि गर्मी और बरसात का मौसम भजन के लिए अच्छा नहीं होता है।जाड़े में रजाई या कम्बल ओढ़ कर बैठ गऐ, मन रूकता है, चित्त शान्त रहता है भजन भी बन जाता है। भजन सूमिरन ध्यान ये तीनों जरूरी हैं।
तुमने सत्संग सुना, नामदान ले लिया भजन सुमिरन नहीं किया तो वा तो तुमको करना ही पड़ेगी सत्संग इसीलिए किया जाता है कि ध्यान भजन और सुमिरन बने। हम अपने घरों में रहें या यहां रहें या कहीं भी जाऐं जो भी परिस्थिती आ जाऐ पर हम संकल्प ले लें, प्रण कर लें कि सुमिरन ध्यान भजन करना ही है। संकल्प लेने से कई प्रकार के काम बन जाते हैं। उसमें प्रेम मिलेगा, शक्ति मिलगी, बुद्धि में जाग्रती होगी फिर हम दीन होकर सेवा करेंगे, अहंकार नहीं होगा। जब तुम छोटे बनकर रहोगे दीन बनकर रहोगे तो दूसरों पर तुम्हारी सेवा का लाभ होगा। फिर लोगों पर यह असर होगा कि तुम्हारा भाव तुम्हारी श्रद्धा अच्छी है, तुम्हारी सेवा बहुत अच्छी है।
यह दुनियां एक रफ्तार में जा रही है। मैंने कितने काफिले निकाले। तुमको देखकर तुम्हारे हाव-भाव देखकर और मेहनत देखकर दुनियां ने अनुभव किया कि धर्म एक प्रकाश है। धर्म ही एक ऐसी चीज है जो हमारे अन्दर नई जाग्रती लाती है। हमारे अन्दर आत्मा है, रूह है जो उस परमात्मा की, उस खुदा की अंश है। उसकी एक ही जाति है। इस तरह के अच्छे विचारों अच्छी भावनाऐं लेकर प्रचार में लग जाऐं, कानों-कानों तक मेरा संदेश पहुंचा दें तो कितनी बड़ी जाग्रती होगी, कितना बड़ा परिवर्तन हो जाऐगा इसका अन्दाजा आप को अभी नहीं है।