परम पूज्य संत बाबा जय गुरु देव जी महाराज

!! जय गुरुदेव नाम प्रभु का !! बाबा जी का कहना है, शाकाहारी रहना है, कलियुग जा रहा है, सतयुग आ रहा है

सत्संग वचन

वासना, इच्छा है जो फैल जाती है उसको समेटना बड़ा मुश्किल होता है। इच्छा सीमित रखो तो दिक्कत नहीं होगी।

एक मनीहारी चूड़ी वाली और एक सब्जी वाला दोनों बाजार गऐ। मनीहारी ने चूड़ियां खरीदी और सब्जी वाले ने सब्जी खरीदी। दोनों एक ऊँट वाले के पास गऐ। ऊँट वाले ने कहा कि तुम दोनों के पास पूरे ऊँट की सवारी तो है नहीं इसलिए अगर तुम चाहो तो हम दोनों का सामान लाद लें। दोनों तैयार हो गऐ। ऊँट वाले ने एक तरफ चूड़ियां लाद ली और दूसरी तरफ सब्जी लादी। ऊँट मुंह घुमाऐ तो सब्जी खाऐ। इस पर मनीहारी हंस दे। ऊँट वाले ने कहा कि तू हंसती क्यों है? यह ऊँट है न जाने किस करवट बैठे।

जब ऊँट ठिकाने पर पहुंचा तो ऊँट उस करवट बैठा जिधर चूड़ियां लदी थी। सारी चूड़ियां टूट गईं। मनीहारी रोने लगी। कहले का मतलब यह है कि इच्छा का विस्तार करते हो तो दुख होता है और माया ऐसी है कि कब किसको रूला दे, कब किसको हंसा दे।

हम कहते थे पचास साल पहले कि एक समय ऐसा आऐगा कि जितने धनी लोग हैं सब लोग रोयेंगे। हम जो कुछ कहते थे वा सबको याद है। अब लोग कह रहे हैं कि चलो दूसरे देश में पैसा कमाकर ले आओ। लोभ लालच सब दुखदाई है। फैक्ट्रियों का पता नहीं है, शेयर बिक रहे हैं, सब पैसा खींचकर सब चल दिऐ। वासना उतनी ही रखो जिससे दूसरों की भलाई हो। पंछी दाना चुगता है, शाम को घोंसले में जाकर सो जाता है। तुम इसलिए धन जमा करते हो कि किसी की जरूरत पर काम आऐ, दूसरों की सेवा कर सको।