परम पूज्य संत बाबा जय गुरु देव जी महाराज

!! जय गुरुदेव नाम प्रभु का !! बाबा जी का कहना है, शाकाहारी रहना है, कलियुग जा रहा है, सतयुग आ रहा है

सत्संग वचन

पहले बच्चों को मां-बाप स्कूल मास्टर के पास भेजते थे तो मास्टर बच्चों को प्यार करते थे और सबक याद न करने पर मारते थे तो मां-बाप कुछ नहीं कहते थे और बच्चे भी मास्टर से डरते थे और मन लगाकर अपना पाठ याद करते थे। तब बच्चे पढ़लिखकर होशियार हो जाते थे।

अब समय चंचल आ गया है। न तो वैसे मां-बाप रहे और न वैसे बच्चे रहे और ऐसे गुरू रहे। तस्वीरों को देख-देखकर सब चंचल हो गऐ। उसमें यही दिखाया जाता है कि मां-बाप को जवाब दे दो,मास्टर को जवाब दो, गोली चला दो, मार दो, धोखा दो। वही सब देख रहे हैं और सीख रहे हैं। पहले का समय बहुत अच्छा था, इतनी चंचलता नहीं थी। स्वामी जी महाराज कहा करते थे कि कोई भी काम करो पहले तो सीखना पड़ेगा। सीखने में लगन और मेहनत की जरूरत होती है। इसी तरह आत्म विद्या है, इसे सीखना पड़ता है, गुरू से प्यार करना पड़ता है, लगन और मेहनत से साधना करनी पड़ती है।

मनुष्य शरीर किराये का मकान है उसमें कूड़ा इकट्ठा कर रहे हो, उसको खराब कर दिया तो बताओ आत्म साधन कैसे होगा। तुम अपने आपको पहचानते नहीं हो कि तुम कहां से आऐ हो, कहां जाओगे। बाहर की शक्ल देखते हो बाहर के ही काम में उलझे रहते हो। खाना-पीना, पढ़ना-लिखना, बाहर के सामान इकट्ठा करना यह सब बेकार है जब तक आत्म कल्याण न हो। यह काम तो पशु-पक्षी भी करते हैं। तिनका जोड़-जोड़कर वो घोंसला बनाता है, पालता है, उड़ना और चलना सिखाता है, खाता-पीता है और सो जाता है। तकलीफ होती है तो वह भी रोता है तो क्या फर्क हुआ? उनमें तो किसी में एक तत्व की कमी है, किसी में दो की किसी में तीन की इसलिए वे आगे पीछे की नहीं सोच सकते पर तुम तो पाँच तत्वों के पूरे शरीर में हो, आगे-पीछे की सोच सकते हो।

गरीब सोचता है कि अमीर सुखी है। उसके पास सब कुछ है। अमीर सोचता है कि गरीब बहुत सुखी है कोई झंझट नहीं, कोई परेशानी नहीं भले ही नमक रोटी खाता है पर चैन से सोता तो है धन वालों को तो नींद भी जल्दी नहीं आती, इतनी चिन्ताऐं रहती हैं।

कहने का मतलब यह है कि चाहे अमीर हो चाहे गरीब हो जब तक कोई ऐसे जानकार के पास नहीं जाऐगा जो रास्ता बताऐ, भजन करना सिखाऐ तब तक सुखी नहीं होगा।