मनुष्य शरीर आपको थोड़े दिनों के लिए, थोड़े समय के लिए मिला है। जो कुछ करना है वो इसी में कर लो। दुनियां के सामान जो देखते हो वह तुम्हारा नहीं है, देखते देखते सब गायब हो जाऐगा। यह जीवात्मा जब इस शरीर मे बैठाई गई थी तब उस पर कोई गन्दगी नहीं थी। एकदम निर्मल थी, सब देखती और सुनती थी, सब परम पद के अधिकारी थे, सब विज्ञानी थे। इसी शरीर की आयु एक लाख वर्ष रखी गई। सब योगी थे, सबकी स्वांसे टिकी रहती थीं, खर्च नहीं होती थीं। और जहाँ स्वांसों की पूंजी मिलती है उससे आगे सुरत चली गई तो वह धरी रह गई। इस तरह से कितनी खेपें सुरतों की चली गई।
पीछे से काल भगवान ने जीवों को फंसाने के लिए कर्म विधान बना दिया। अब इस पर अच्छे बुरे कर्मों केी गन्दगी चढ़ने लगी। फिर चैरासी और नरक बना दिया और जीवात्माओं को फंसा दिया। अच्छे की भी गन्दगी चढ़ने लगी और बुरे की भी चढ़ने लगी। कर्मानुसार जीवात्माऐं नर्कों और चैरासी में भटक रही है।
अब यहाँ एक परम्परा बना लिया कि गुरू कर लो। यह झूठी परम्परा है। गुरू वह है जो मालिक को प्राप्त करता है। ऐसे महापुरूषों के पास जाना होगा, उनकी सेवा करनी होगी, वचनों को मानना होगा और जैसे कहें वैसे भजन करना होगा। जिसने मालिक को पा लिया तो ‘‘न कोई गुरू न कोई चेला’’।
इसलिए सच्चे और पूरे गुरू की तलाश करो। जब वो मिल जाऐंगे तभी तुम्हारी जीवात्मा का कल्याण होगा। फिर तुम जन्म मरण से छूट जाओगे, नर्कों और चैरासी से छूट जाओगे।