जो नामदान लेते हैं उनको बताया जाता है कि रोज ध्यान करना, रोज सुमिरन करना, रोज भजन करना और आते-जाते रहना। सत्संग नहीं सुनोगे तो थोड़े दिनों में नाम, रूप, स्थान, धुन सब कुछ भूल जाओगे और थोड़े दिनों में ऐसे हो जाओगे जैसे संसारी रहते हैं। जो नामदान लेकर जाते हैं, सत्संग में नहीं आते वो कुछ नहीं कर सकते। सत्संग नहीं सुनेंगे तो कुछ नहीं कर सकेंगे क्योंकि यहा अन्दर का रास्ता है, जिधर से आऐ हो उधर ही जाना है।
प्रेम करना होगा। तुम में प्रेेम नहीं है। प्रेम होता तो सत्संग में आते सत्संग सुनते। प्रेम नहीं है तो कहने को नामदान ले लिया। तुम मन की लहरों में मत चलो। अथाह देश से आऐ हो, काल के देश में रहने लगे और यहां फंस गऐ। काल ने थौड़े दिनों के लिए यह काया दे दिया। जहां समय पूरा होगा वह इस काया से निकाल बाहर करेगा। जब सच्चा भजन करोगे तो काल बच सकते हो। दुनियां तो भजन कर नहीं रही है और तुम हो कि बार बार उधर ही भागते हो। समझाया जाऐ तो समझते नहीं बस उधर की ही बात।
मनुष्य शरीर मिल गया है, महापुरूष मिल जाऐं तो उनका सत्संग सुनो, उनसे प्रेम करो और नाम को पकड़ो। आप उसको पकड़ोगे और वह आपको पकड़ेगा और खिंचेगा, छोड़ेगा फिर खिंचेगा और फिर ऊपर फैंक देगा।