मालिक से मिलने की, उसके दर्शन की तड़प हमेशा उठती रहे तो यह रूह शरीर को छोड़कर उठ जाती है और सुरत की सम्भाल हो जाती है। आप हो कि उसकी शक्ति को अपनी इच्छाओं में लगा देते हो। इसीलिए वो उठती ही नहीं। आपको भी मुसीबत और महात्माओं को भी मुसीबत। इसीलिए महात्माओं ने बराबर यही कहा कि रोज भजन में लगो।
यह शरीर तुम्हारा नहीं है, किराये का है जिस दिन स्वांसे पूरी होंगी वो खाली करा लेगा। जो चीज तुम्हारी है ही नहीं उससे इतना मोह करते हो और जो चीज तुम्हारी है उसके लिए कुछ नही करते हो। इसलिए रास्ता मिल गया, नाम मिल गया तो सुरत से कताई करो। सुरत शब्द को पकड़ लेगी तो वह खींच लेगा। जैसे शब्द उतारकर लाया था वैसे ही पार पहुँचा देगा। आना जाना खत्म हो जाऐगा।
तुम संसार में लगे रहोगे तो जन्म मरण का चक्कर बना रहेगा। उसमें रोते-चिल्लाते रहोगे पर छुटकारा नहीं होने वाला। इसलिए वचनों को याद रखो और जो रास्ता निकलने का मिल गया है उससे निकल चलो। ये जो साज सामान आपको मिला है ये अपना नहीं है इससे काम ले लो और यहाँ से निकल चलो। वैसे भी जब जाने लगोगे तो ये सबकुछ यहीं पड़ा रहेगा।
इसी चीज को आपको समझना है। ये सारे साजो सामाना थोड़े दिनों के लिए दिया गया है इससे काम लेना है और अपना काम करके यहां से निकलकर अपने सच्चे देश पहुँचाना है। देसरे परिवार के बंधन में बंधे हुऐ हो उसी में रोते-चिल्लाते हो, छीना-छपटी मची हुई है,, इससे तब छूटोगे जब महात्मा मिलेेंगे, रास्ता मिलेगा और तुम भजन की कमाई करोगे।