आज कलयुग का समय है। कलयुग कहते हैं ‘कर-युग’। महापुरूषों ने भव सागर से पार होने के लिए कलयुग को बहुत आसान कर दिया। त्रेता की क्रिया आप नहीं कर सकते हो, द्वापर की क्रिया भी आप नहीं कर सकते हो क्योंकि आपके कर्म खराब हो गऐ, खान-पान बिगड़ गया, आचार-विचार बदल गऐ। आप में न शारीरिक बल रहा और न मानसिक बल रहा।
उन युगों की साधना के लिए मन की निर्मलता चाहिऐ, दिल में दया चाहिऐ। शारीरिक और मानसिक बल चाहिऐ। कलयुग में आप दौड़ते रहे यहीं के साजो-सामान इकट्ठा करने के लिए और यहीं सब इकट्ठा किया। जीवात्मा चेतन है और यह सब जड़ है। आप जड़ क्रिया में लगे रहे, चेतन काम तो आपने किया नहीं। यह शरीर मिट्टी है और जितना सामान आपने इकट्ठा किया वह चाहे सोना, चांदी हो, हीरा, जवाहरात हो पर है सब मिट्टी ही। आपने जो जो कर्म अक्ष्छा-बुरा किया वह सब आपको भोगना पड़ेगा। आपको सिवाय दुख के अभी कुछ नहीं मिला तो आगे क्या मिलगा।
शाकाहारी हो जाओ। आप सोचते होंगे कि बाबा जी क्यों कहते हैं शाकाहारी होने के लिए। तो आप बताइये कि आपके घर के किसी सदस्य को कोई उठा ले जाऐ और काटकर खाने लगे तो आपको कैसा लगेगा ? ऐसे ही तो वह जीव भी है। उन्हें भी दुख होता है तकलीफ होती है।