आज देश में एक हलचल हैं कि कलयुग में सतयुग आऐगा। इसका एक भय सबमें व्याप्त हो गया है। साधू डर रहे हैं, राजा डर रहा है, रैयत डर रही है। समय अपना परिचय देगा ही। आप इस सन्देश को पहुंचाने में मेरी मदद करो। मैं ऐसा विश्वास दिलाता हूं कि आपकी मेहनत कभी व्यर्थ नहीं जाऐगी। आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों लोग समझेंगे। हम भी उसी दुनियां में रहते थे जहां बुराई थी। ऐसे ही और लोग भी धीरे धीरे निकल कर इधर आते जाऐंगे, उधर से दूर होते जाऐगे। एक अच्छे समाज में आ जाऐंगे। ऐसा नहीं कि बुरे से लोग अच्छे नहीं बनते हैं। जब जमीन तैयार करनी होती है तो मेहनत करनी होती है। आप लोग अपनी जगह पर रहो ताकि जो बगीचा लगाओ उसका फल खाओ। ऐसा फल बिरले को ही मिलता है। देखा यह गया है कि जो बगीचा लगाता है वह खुद फल नहीं खाता, उसकी औलाद खाती हैं। हम चाहते हैं कि तुम भी खाओ और दूसरों को भी खिलाओ। हमारी मेहनत को देखो। यह ज्वार-भाटा है। जब आऐगा तो बड़े बड़े जहाज लेकर चला जाऐगा। मालिक की दया मेहर का बड़ा ज्वार भाटा आऐगा, लगे रहो किनारे और यह समझते रहो कि हम कुछ नहीं हैं केवल मालिक का हुकुम बजाता है।
(1982)