शुभ अशुभ और सुख दुख के मैं ,
कभी न झूले में झुलूँ।
है प्रियनाथ सृस्टि के अंत तक,
तुम्हे न एक पल को भूलूँ।
तुम से बढ़ कर तीन लोक में
कभी न कोई मेरा हो।
मेरा मुझमेँ कुछ ना बचें
सब तू ही हो सब तेरा हो।
नाथ अनाथ के निर्बल के बल,
करो स्वीकार निवेदन ये।
स्वांस स्वांस में बसों प्रभु मेरे
हृदयँ के स्पंदन में ।।
???? जयगुरूदेव ????
रचनाकार:- प्रेम देशमुख
जयगुरुदेव आवाज़ टीम