हे सतगुरु स्वामी, मेरे तुम सतगुरु स्वामी।
शरण तुम्हारी हूँ मैं, मूरख खल कामी।।
तुम हो बड़े दयालु, तुम हो उपकारी।
तुम हो अन्तर्यामी, शक्ति अवतारी।।
अंधकार में अब तक, मैं था अज्ञानी।
तुमने मुझे उबारा, महिमा अति जानी।।
शब्द ज्ञान बतलाया, जिससे सुरत जगे।
घट में देख उजाला, आगे चलन लगे।।
रक्षा कर भक्तों की, संकट दूर करे।
साधन भजन बढ़ाकर, सारे पाप हरे।।
काम, क्रोध, मद, मत्सर, शत्रु हैं सारे।
शरण तुम्हारी पाकर, अब वह बल हारे।।
निर्बल के बल तुम हो, तुम ही सहारा हो।
ऊपर उसे उठाते, जो कोई हारा हो।।
सुनकर टेर दयामय, अन्त समय आना।
यमदूतों से छुड़वा, पार लगा जाना।।