बाबा जय गुरुदेव का परिचय:
बचपन का नाम तुलसीदास। जन्म (तारीख का पक्का ज्ञान नहीं) इटावा जिले के भरथना स्थित गांव खितौरा नील कोठी प्रांगण में। जय गुरुदेव नामयोग साधना मंदिर के प्रकाशन में इस साल उनकी उम्र 116 साल बताई गई। वह हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी में पारंगत थे। उन्होंने कोलकाता में पांच फरवरी 1973 को सत्संग सुनने आए अनुयायियों के सामने कहा था कि सबसे पहले मैं अपना परिचय दे दूं- मैं इस किराये के मकान में पांच तत्व से बना साढ़े तीन हाथ का आदमी हूं। इसके बाद उन्होंने कहा था- मैं सनातन धर्मी हूं, कट्टर हिंदू हूं, न बीड़ी पीता हूं न गांजा, भांग, शराब और न ताड़ी। आप सबका सेवादार हूं। मेरा उद्देश्य है सारे देश में घूम-घूम कर जय गुरुदेव नाम का प्रचार करना। मैं कोई फकीर और महात्मा नहीं हूं। मैं न तो कोई औलिया हूं न कोई पैगंबर और न अवतारी।
सात साल की उम्र में ही तुलसीदास के मां-बाप का निधन हो गया था। तभी से वह मंदिर-मस्जिद और चर्च जाने लगे। कुछ समय बाद घूमते-घूमते अलीगढ़ के चिरौली गांव पहुंचे। वहां घूरेलाल शर्मा को उन्होंने अपना गुरू बना लिया।
दिसंबर 1950 में उनके गुरु नहीं रहे। बाबा जय गुरुदेव ने दस जुलाई 52 को बनारस में पहला प्रवचन दिया था। 29 जून 75 के आपातकाल के दौरान वे जेल गए, आगरा सेंट्रल, बरेली सेंटल जेल, बेंगलूर की जेल के बाद उन्हें नई दिल्ली के तिहाड़ जेल ले जाया गया। वहां से वह 23 मार्च 77 को रिहा हुए। 1980 और 90 के दशक में दूरदर्शी पार्टी बनाकर उन्होंने संसद का चुनाव लड़ा, लेकिन जीत हासिल नहीं हुई।
गुरु के आदेश का पालन करते हुए बाबा जय गुरुदेव ने कृष्णानगर (मथुरा) में चिरौली संत आश्रम बनाया। बाद में नेशनल हाइवे के किनारे एक आश्रम बनवाया। नेशनल हाइवे के किनारे ही उनका भव्य स्मृति चिन्ह जय गुरुदेव नाम योग साधना मंदिर है। यहां दर्शन 2002 से शुरू हुआ था। नाम योग साधना मंदिर में सर्वधर्म समभाव के दर्शन होते हैं। इस समय आश्रम परिसर में ही कुटिया का निर्माण करा रहे थे।