परम पूज्य संत बाबा जय गुरु देव जी महाराज

!! जय गुरुदेव नाम प्रभु का !! बाबा जी का कहना है, शाकाहारी रहना है, कलियुग जा रहा है, सतयुग आ रहा है

छोटी कहानी की बड़ी सीख :: सत्संग की महिमा

एक बार का जिक्र है। एक बहुत बड़ा चोर था।
जब वो मरने लगा तो अपने बेटे को बुलाकर नसीहत दी, कि अगर तुझे चोरी करना है तो किसी महात्मा के सत्संग में गुरुद्वारा, धर्मशाला या धर्म स्थल पर मत जाना कभी, इनसे दूर ही रहना और दूसरी बात अगर पकडे़ जाओ तो मानना नहीं कि तुमने चोरी की है। चाहे कितनी भी मार पड़े, मानना नहीं कि तुमने चोरी की है।

लड़के ने कहा की जी सत्य वचन, मैं ऐसा ही करुंगा। इसके बाद वह चोर मर गया और लड़का रोज रात को चोरी करता रहा।

एक बार उस लड़के ने चोरी करने के लिये किसी घर में ताले तोड़े। घर वाले जाग पड़े और उन्होनें शोर मचा दिया, आगे पहरेदार खड़े थे। उन्होंने कहा कि आने दो बचकर कहां जायेगा। हम यहां पर पकड़ लेंगे उसको।

अब इधर घर वाले खड़े थे, उधर पहरेदार खड़े थे। चोर जाये तो किधर जाये। खैर! किसी तरह वो बचने के लिये वहां से भागा। तो रास्ते में एक धर्मशाला पड़ती थी।

उसे अपने बाप की सलाह याद आई कि धर्मशाला में नहीं जाना है। लेकिन अब करे तो क्या करे ? आखिर उसने सोचा कि मौका देखना चाहिए और धर्मशाला में चला गया।

बाप का आज्ञाकारी बेटा था। उसने कानों में अपनी दोनों उंगली डाल ली, कि सत्संग के वचन कानों में ना पड़ जायें हमारे पिता ने मना कर रखा है कि सत्संग में नहीं जाना। तो उसने कानों में अपनी दोनों उंगली डाल ली कि हम सत्संग ना सुन पायें।

अब प्रेमियों जो हमारा मन होता है अड़ियल घोड़े की तरह से होता है, इसे जिधर से मोड़ों उधर ही जाने लगता है। कानों को बन्द कर लेने पर भी चोर के कानों में यह वचन पड़ गये कि देवी- देवताओं की परछाई नहीं होती। वहां पर सत्संग चल रहा था, और इसने कान बन्द कर रखा था। फिर भी उसके कान में थोड़ी सी आवाज आई कि देवी- देवताओं की परछाई नहीं होती।

उसके मन ने कहा कि परछाई हो चाहे ना हो। मुझे क्या ? फिर मैंने यह वचन जानबूझकर तो नहीं सुने। अन्जाने में सुन लिया।

उसने अपने पिता को सफाई देते हुए मन ही मन कहा कि मैंने जानबूझकर नहीं सुना ये, ऐसे ही सुना गया मेरे कानों में। मैंने तो कान बन्द कर रखा है।

अब इधर घर वाले और पहरेदार पीछे लगे हुऐ थे। किसी ने बताया कि चोर धर्मशाला में है। धर्मशाला की जब जांच हुई तो वह चोर पकड़ा गया।

प्रेमियों! उस चोर की पुलिस ने बहुत पिटाई की। लेकिन वह नहीं माना कि उसने चोरी किया है। और आपको बता दें कि उस समय यह नियम था कि जब तक मुजरिम अपराध न मानें तो सजा नहीं दी जा सकती थीं।

आखिर उस चोर को राजा के सामने पेश किया गया वहां भी खूब मार पड़ी लेकिन चोर जो था कि मानने को तैयार ही ना था। उसने अपने पिता से वचन ले रक्खा था कि कितना भी मार पड़े, मानना नही की हमने चोरी की किया है।

राजा को पता था कि चोर जो होते हैं वो देवी की पूजा करते हैं, देवी की आराधना करते हैं। इसलिये पुलिस ने एक ठगनी को सहायता के लिये बुलाया।

ठगनी को बुलाया गया, सारी बात बताया गया तो उसने कहा कि मैं मना लूंगी उसको। इससे कहलवा लूंगी कि इसने चोरी किया है। उस ठगनी ने देवी का एक स्वांग (भेष) बनाया, दो नकली बाहें लगाई, चारों हाथों में चारों मशालें जलाईं, और नकली शेर की सवारी की । चूंकि वह पुलिस के साथ मिली हुई थी, इसलिये जब वो आई तो उसकी हिदायत के मुताबिक जेल के दरवाजे कड़क कड़क कर खुल गये।

पहले से सब प्लान कर रखा था कि देवी जब आये जेल में तो सारे दरवाजे अपने आप खुलते जायं। ऐसा ही हुआ । और जब आदमी किसी मुसीबत में फंस जाता है तो अपने इष्ट की याद करता है। इसलिये चोर भी उस समय देवी की याद मे बैठा हुआ था।

अचानक से दरवाजा खुल गया। और अंधेरे कमरे में एकदम रोशनी हो गई। और उस ठगनी जो देवी का रूप बनाया था, देवी के रूप में ही एक खास अंदाज में कहा- देखो भक्त तूने मुझे याद किया और मैं आ गई। तूने अच्छा किया जो तूने चोरी नहीं बताई। तूने अगर चोरी की है तो मुझे सच सच बता दे। मुझसे ना छिपाना। मैं तुझे फौरन आजाद करा दूंगी यहां से ।

चोर देवी का भक्त था, अपने इष्ट को सामने खड़ा देखकर बहुत खुश हुआ। मन में सोचा कि मैं इसको सच सच बता दूं। अभी वह बताने के लिये तैयार ही हुआ था कि उसकी नजर देवी की परछाई पर पड़ गई।

उसको फौरन सत्संग का वचन याद आ गया कि देवी की परछाई नहीं होती। उसने देखा कि इसकी तो परछाई है समझ गया कि यह देवी नही, हमारे साथ छल हुआ है। यह सोचकर वह रुक गया और बोला कि- मां, मेंने चोरी नहीं की है। अगर मैंने चोरी की होती तो क्या आपको पता न होता। आप तो सर्व व्यापी हैं आप तो सब जानती हैं। अगर मैंने चोरी की होती तो आपको तो पता होता ही। मैंने कोई चोरी नहीं किया है।

अब ठगनी के कहने पर जेल के बाहर बैठे पहरेदार चोर और ठगनी की बातचीत नोट कर रहे थे। उनको और ठगनी को विश्वास हो गया कि यह चोर नहीं है।

अगले ही दिन उन्होंने राजा से कह दिया कि यह चोर नही है। और फिर राजा ने उसको आजाद कर दिया।

जब चोर आजाद हुआ तो सोचने लगा कि जब सतसंग का एक वचन सुना तो जेल से छूट गया। अगर सारी उम्र सुनुं तो पता नहीं क्या क्या मिले मुझे।

जब यह ख्याल आया तो रोज सतसंग में जाने लगा वह चोर। किसी पूर्ण महात्मा की शरण ले ली उसने। और चोरी का पैसा हमेशा के लिये छोड़ दिया। और वह जो चोर था महात्मा बन गया।

धर्म प्रेमियों, इसलिये कहते हें कि- सतसंग के बराबर न गंगा है, न यमुना है, और ना ही कोई अन्य तीर्थ है। कलयुग में सतसंग ही सबसे बड़ा तीर्थ हे। इसलिए आपसे हमारी विनती है कि सतसंग में हमेशा जायें ओर जाते रहें।

जयगुरुदेव