परिवर्तन का समय निश्चित है और उसी का इन्तजार हो रहा है। अपील के स्वर में बाबा जी ने कहा कि लोग शाकाहारी हो जांय तो अच्छा है वर्ना अशुद्ध आहार के दुष्परिणाम भोगने पड़ेंगे। दोनों भवों के पीछे जीवात्मा का घाट है वहां आ जाओ तो वहां सुख मिलेगा, आनन्द मिलेगा। जीवात्मा के ऊपर चढ़ी हुई जन्मों-जन्मों की गन्दगी उसी घाट पर धोई जाती हे। ऊपर के लोकों स्वर्ग बैकुण्ठ आदि में जाने का रास्ता मनुष्य शरीर में ही दोनों आंखों के पीछे से गया हुआ है।
विचार करो क्या कोई रोगी किसी पुराने जमाने के प्रसिद्ध हकीम या वैद्य से अपनी बीमारी का इलाज करवा सकता है? क्या कोई फरियादी पुराने जमाने के किसी न्यायमूर्ति न्यायाधीश से अपने मुकदमें का फैसला करा सकता है? क्या कोई स्त्री किसी पुराने जमाने के शूरवीर से ब्याह करके सन्तान उत्पन्न कर सकती है ? कदापि नहीं। अगर यह बतें सम्भव नहीं तो कोई परमार्थ अभिलाषाी किसी गुजरे, महात्मा का आश्रय लेकर परमात्मा में लीन कैसे हो सकता है? सन्त-महात्मा अपने-अपने जमाने में दुनियां में आये। जिन्होंने उनकी शरण ली उन्हें जन्म-मरण से, आवागमन से मुक्त किया। समय पूरा होने पर ससांसारिक शरीर को त्याग दिया और परमात्मा में समा गये।परन्तु संसार छोड़ने से पहले अपना अध्यात्मिक काम दूसरे महात्मा को सौंप गये।
यह प्रकृति का नियम है, कुदरती वसूल है कि मनुष्य-मनुष्य को समझाता है। परमात्मा इस स्थूल देश में अमर जीवन प्राप्त सत्गुरू द्वारा ही काम करता है। कुछ लोगों को ख्याल है कि पिछले महात्मा अब भी आध्यात्मिक मण्डलों में विद्यमान हैं और हमारी सहायता कर सकते हैं। यदि किसी पिछले महात्मा को आध्यात्मिक काम करना भी हो तो वह प्रकृति नियम का पालन करते हुए ;जिसके अनुसार मनुष्य को केवल मनुष्य ही समझा सकता हैद्ध किसी जीवित महापुरूष द्वारा ही करेगा।
अगर हमने किसी महात्मा को देखा नहीं और शैतान या कोई अन्य अधूरी रूह अन्तरी मण्डलों पर प्रकट होकर यह कहे कि मैं अमुक महात्मा हूं तो हम उस महात्मा को न पहचान सकने के कारण धोखे के शिकार हो जायेंगे। अगर पिछले महात्मा हमारे पथ-प्रदर्शक हो सकते हैं और समय के गुरू की आवश्यकता नहीं, ऐसी हालत में सवाल यह पैदा होता है कि पुराने जमाने में गुरू की जरूरत क्यों थी? अगर गुजरे महात्मा रूहानी तालीम देकर अब रूहों को मालिक से मिला सकते हैं तो कुल मालिक स्वयं यह काम कर सकता था। अगर जिन्दा महात्मा की जरूरत किसी जमाने में थी तो वह इस बात का प्रमाण है कि जिन्दा गुरू की अब भी जरूरत है और हमेशा रहेगी।