भौतिकवाद कहते हैं भोगी दुनियां को। भौतिकवाद में अच्छे शब्दों की जरूरत नहीं, भले-बुरे का ज्ञान नहीं, किसी की पहचान की जरूरत नहीं। ऐसे भौतिकवादियों और भौतिक भोगियों ने धर्म को शहरों से मारकर जंगलों में भगा दिया। यदि धर्म रहता तो कुछ अंकुश आंखें पर होता, कुछ अंकुश वाणी पर होता, कुछ अंकुश सोचने-विचारने पर और कहने-सुनने पर होता। जहां अंकुश रहता है वहीं सत्य रहता है। जब सत्य रहता है तब वहीं धर्म रहता हैं। धर्म का अंकुश उठ गया तो कोई विवेक नहीं, किसी की कोई पहचान नहीं, देखने समझने की कोई शक्ति नहीं। लेकिन यह सत्य है कि वह किसी न किसी रूप में हर युग में रहा और अब भी है। इतिहास साक्षी है कि जब द्रोपदी का चीर हरण हुआ तो उस शक्ति ने अपना परिचय दिया। जब प्रहलाद पर अत्याचार हुआ तब भी उसने अपना परिचय दिया। जब-जब भक्तों पर संकट आऐगा तब तब वो अपना परिचय देगा। जब जब बाबा जी कहते हैं कि सबको भोजन, सबको कपड़ा, सबको मकान और सबको रोजी मिलेगी तो आप जबान गंदी क्यों करते हो? आप यह सोचो कि काम चाहे कोई भी करे लाभ हमको हो और सबको हो। फिर मैंने तो कहा है कि सबको लाभ होगा। बाबा जी ने बड़ी मैहनत की है और अब भी कर रहे है। वक्त का इन्तजार करो। वक्त का इन्तजार राम ने किया, कृष्ण ने किया और मैं भी कर रहा हू। याद रखो कि जमाना बदलेगा, अवश्य बदलेगा इसे कोई रोक नहीं सकता। (1981)