मैं हर काम समय से करता ही रहता हूं। जो कुछ भी कहा जाऐ उसे तुमको मानना चाहिए। कोई भूल-चूक हो गई हो वह यहां छोड़कर जाओ। भूल-चूक से शराब पी ली हो या मांस खा लिया हो तो प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि अब ऐसा नहीं करूंगा। इसके एवज में सैंकड़ों व्यक्तियों के शराब-मांस छुड़वाऊंगा। हमेशा अपने मन में झींकते और पछताते रहो और क्षमा मांगते रहो। जानकर कोई गलती मत करो। अनजाने में कोई हो जाऐ तो उसकी क्षमा होगी। ऐसा संकल्प और विचार बनाते रहोगे कि इस सत्संग में यह बुराई छोड़ देंगे। इससे दात बराबर मिलती रहेगी।
दूरदर्शी कोई लक्ष्य है कोई निशाना है, कोई बात है, कोई ज्ञान है, कोई काम है। दूरदर्शी जो दिखाई दे रहा है, भविष्य में उसकी बड़े जोर-शोर से पुकार होगी तब देखना। अबकी समय का निशाना खाली नहीं जाना चाहिए। समय के निशाने पर उसे बेध लेना चाहिऐ। वह निशांनची है और दूरदर्शी है जो समय पर अपना निशाना लगा देता है। और सारी बातें भौतिकता की छोड़ दो। परमार्थी चीजें आगे रखो। दोनों पल्लों को आगे रखो और बराबर देखते रहो। सत्संग तो बढ़ेगा ही, लोगों में पुकार उठेगी। लोग कहेंगे कि हम भी वहां जाऐंगे।
आज तो घेराघारी मानव धर्म क्रिया के लिए हो रही है। उस समय कोई घेराघारी नहीं। वह भारी घटना ईश्वरीय होगी, लोग चकाचैंध होंगे उसमें बड़े परिवर्तन होंगे। यह परिवर्तन तो होता ही रहेगा।
(शाकाहारी पत्रिका के सौजन्य से: 7 सितम्बर 1980)