परम पूज्य संत बाबा जय गुरु देव जी महाराज

!! जय गुरुदेव नाम प्रभु का !! बाबा जी का कहना है, शाकाहारी रहना है, कलियुग जा रहा है, सतयुग आ रहा है

महात्माओं को समझना आसान नहीं

किसान जब बरसात आती है तो जमींन की जुताई करके बीज डालता है और यह आशा लगाता है कि दो चार दस दिन में पौधे निकलेंगे। इस बीच में वह खेत की बडी देखभाल करता रहता है कि कहीं ऐसी घास न उग जाए जो खेत को खराब कर दे। इसी तरह से जब हम सत्संग में आते हैं, नाम की साधना में लगते हैं तो हमंे पूरी चैकसी करनी चाहिए कि हमारे अन्दर कोई एसी गन्दगी न आ जाए, कोई ऐसी घास न जमने पाए जिससे हमारी साधना में कोई रूकावट हो। सत्संग में आए साधना करते हैं यह एक तरह का बीज डाल दिया। अब किसी तरह की घास न निकलने पाए, इसकी निरख परख होती रहनी चाहिए। ऐसी कोई चीज न आ जाए जिससे उसके नाम रूप में, भजन और ध्यान में, भाव और भक्ति में, विश्वास और प्रेम में विक्षेप पैदा हो जाए। जब यह निरख परख होती रहती है तो बात जहां की तहां रहती है।

सत्संगी बराबर व्यवहार में, बातचीत में और अपनी निरख परख में सावधानी बरतें। हमेशा अपने को देखते रहें कि पहले हमारे अन्दर कितनी कमजोरियां थीं और अब कितनी हैं। अपने को देखते रहें, चलते रहें, साधन भजन करते रहें। नाम धन जमा होता रहता है। जमते-जमते इसका समूह बन जाता है फिर उसका फल मिलने लगता है। मन, बुद्धि, चित्त ये तीनों चीजें साथ दे जाए तो काम बन जाता है। यह नहीं कि बाबा जी के पास आए तो तुरन्त सब काम हो जाए। देने वाला तो दे देगा परन्तु आप लेने वाला पात्र तो बनो। जब समझ नहीं कि यह हीरा है या मिटटी तब तक लेने वाले पात्र नहीं। हम अनादि काल से संसारी हैं, वासनाओं में जकडे हैं। महात्माओं को समझ लेना इतना आसान नहीं है। तरह तरह की वासना वाले लोग यहां आते हंै कोई भगवान को मांगने नहीं आता है। महात्मा जब मुफत में देते हैं तो लोग ले तो लेते हैं क्योकि डरते हैं पर इधर उधर फेंक देते हैं। कोई न कोई तो ले लेगा ही। जब शोहरत होती है तो लोग फिर भागते हैं।

(शाकाहारी पत्रिका के सौजन्य से: 28 सितम्बर 1980)