सबसे बड़ी खुशी और खुशहाली की बात यह है कि काशी विश्वनाथ बमभोले भी आपके साथ हो गऐ हैं। ब्रम्हा, विष्णु और बमभोले ये सब चाहते हैं कि जमाना बदले। जो मैं कहता हूं उस पर पहले लोगों को विश्वास नहीं होता है। लोग समझते हैं कि बमभोले काशी विश्वनाथ काशी में होंगे पर उन्होंने काशी को दो वर्षों के लिए छोड़ दिया और भक्तों के साथ चले गऐ हैं। इनको दो वर्ष तक छिपा कर रखो। दो वर्ष तक छिपा कर रख लिया तो फतह हो जाओगे। आप सब भाग्यशाली हो जो यहां आऐ। जिसका शरीर इस स्थान पर छूटा परम भाग्यशाली है। ऐसे अवसरों पर सभी लोग कामना करते हैं कि मेरा शरीर ऐसे पवित्र स्थान पर ऐसे पवित्र अवसर पर शान्त हो जाऐ। जिस प्रेमी का समय पूरा हो गया वह हंसी खुशी चला जाता है, उसे कोई तकलीफ नहीं होती। वे आराम से यहां से चले गये।
यह समुदाय जो यहां उपस्थित है या जो यहां आता जाता है उसे कोई धोखा नहीं दे सकता हैं। यह भूलने वाली चीज नहीं है चाहे आप कितना ही पर्दा डालो। यह बालुका उठाकर कागज में बांधकर ले जाना। एक समय ऐसा भी था जब राजनीतिक लोगों की राख और हड्डियां इन बालू कणों में मिलाई गईं। इस मिट्टी में मिलाई गईं तो इसका असर यह हुआ कि अकाल का कोहराम मच गया। जब पूर्णाहुति हो जाऐ तो जहां भी सुविधा हो वहीं से बालुका के कण उठा लेना। इसे लेकर जाओगे तो उसे रतन समझना। यह वह बालू तैयार की गई है जो तुम्हें हीरे जवाहरात पहनाऐगी। तुम्हें दो वर्ष योगदान देना है। मैं अखबार वालों से निवेदन करूंगा कि सब चीजें वे हमारी सही सही निकालें। अगर ऐसा नहीं करते हैं तो आप निकालिए ही नहीं। सब लोग एक होकर ईमानदारी से रहो। इसकी आज बहुत जरूरत है।
हम चाहते हैं कि लोग फिर से सम्भलें और भगवान का भजन करें और अपने पापों का प्रायश्चित करें। अपनी अपनी रूहों और आत्माओं को पाक करें। अन्तिम लक्ष्य आत्म कल्याण का रखें। अपनी जीवात्मा पर दया और रहम करो जल्दी से जल्दी अपने वतन पहुंच जाओ। हमें तो गुरू महाराज ने दोनों चीजें पढ़ा दी हैं-गृहस्थी कैसे चलती है और धर्म की व्यवस्था कैसे होती है। छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी सभी बातों को गुरू महाराज ने हमको सिखा और पढ़ा दिया है। यहां पर यह देवियां एक एक मील से मिट्टी लेकर आईं। देवियां पुरूषों ने सफाई कीं। इन्होने सारी व्यवस्था अपने आप की। ये स्वयं सेवादार हैं। यह कोई मामूली बात है ? आपने कोई इन्तजाम नहीं किया, कोई सहयोग नहीं दिया। अभी तक तो हमने कुछ आशा की थी पर अब हमारी सारी आशाऐं टूट गईं हैं। अब जब हम कभी इस तरह का कार्यक्रम करेंगे तो अपना पूरा इन्तजाम करेंगे, अपनी पूरी व्यवस्था करेंगे।
(शाकाहारी पत्रिका के सौजन्य से: 21 अक्टूबर 1980