देशवासियों हिन्दू-मुस्लिम, सिख-ईसाई गौर करो और ध्यान से सोचो कि:- खुदा यानी भगवान एक है। हक ईमान एक है। रूह-जीवात्मा एक है। बद-नेक, अच्छे-बुरे काम एक हैं। सत्य-सच एक हैं पेट तो सबका एक है। खुदा के यहां से आने का रास्ता और जाने का रास्ता एक है। दोजख व नर्क एक है। बहिश्त व बैकुण्ठ एक है शराब सब मतों में वर्जित है। गुनाह सब धर्मों में मना है। बुराई मत करो, सब मजहबों ने मना किया है। फकीर, सन्त एक हैं जो जाते खुदा से मिले हैं। मोहताज, यतीम, गरीब, गुर्बों की खिदमत करो, खैरात दो, रूहों पर रहम करो, आत्मा पर दया करो। मनुष्य शरीर से यानी जिस्म से खुदा की हकीकत बताई जाती है यानी भगवान का भेद बताया जाता है। हक ईमान छोड़कर काफिरों का साथ देकर बदनाम हो चुके हैं। गुनाहों की गठरी काफिरों के साथ लाद ली, हिसाब खुदा के यहां देना होगा। कैसे माफ किऐ जाओगे? मौत तो जरूर होगी। जुल्म करते करते दिल को पत्थर बना लिया। अब तो महात्मा फकीर की हकीकत सुननी होगी। इन्सान कब बनोगे? जब फकीर की मेहरबानी होगी। मनुष्य कब बनोगे? जब महात्मा की दया होगी। कलयुग तो जाऐगा, सतयुग आऐगा। आज तो हंसते हो कलयुग का थप्पड़ लगेगा तो हंसना बंद हो जाऐगा। फकीरों की बात दिल्लगी मत करो। दिल से फकीरों की खिदमत करो। हुकुम की तामील करो। मुरीद यानी सच्चे सेवक कब बनोगे? जब गुरू की हर बात मीठी लगेगी। नादान! तुम गुरू यानी मुर्शिद के राज को जान सकोगे? चालिस दिन का काफिला निकलेगा। दशहरे के दिन 8 अक्टूबर 81 से चार हजार किलोमीटर की यात्रा होगी। 16 नवम्बर को वापस आऐगा
(मथुरा 1981)