देखो प्रेमियों तुम यहाँ बैठ गऐ तो बुद्धि और विवेक से काम लो। शरीर यहाँ बैठा है और मन कहीं और भाग रहा है इससे कुछ होने वाला नहीं है। तुम मन को, चित्त को रोककर अपनी बैठक बना लो। चार अफीमची एक जगह बैठ जाते हैं तो उन्हें दूसरी बात याद नहीं रहती। ऐसे ही नाम का चस्का है। एक बार मेहनत करके मन, बुद्धि, चित्त को रोककर सुरत के साथ बैठक बना लो। बैठक बन गई तो जब समय हुआ तो मन कहीं रूक नहीं सकता, तुम भजन पर बैठ जाओगे।
साध का संग करो। साध का संग करोगे तो वो तुम्हें पक्का करेगा। गुरू से तुम खुलकर कुछ नहीं कह सकते और गुरू भी जो कहते हैं वो इशारे में। यह उनकी मर्यादा है। किन्तु साध मिलेगा तो तुम्हारी कच्चाइयों को निकालेगा। इसीलिए प्रार्थना करते हैं कि:
साध संग मोहिं देव नित, परम गुरू दातार।
साध मिलेगा तो तुम चित्त लगाकर सत्संग सुनोगे, उन वचनों को याद रखोगे और सब बातें भूल जाओगे। अपनी गल्तियों का प्रायश्चित करो किन्तु अगर गल्ति ही करते रहे तो मनुष्य नहीं कहे जाओगे, राक्षस कहे जाओगे। हमारी पराविद्या तो सर्वजीवनी है पर तुमने उसको छोड़ दिया और दूसरों की भाषा में, दूसरों के खान-पान में बह गऐ और अपने ज्ञान की विद्या को खो दिया। तुम जानते नहीं हो कि प्रकृति, कुदरत क्या करने वाली है। एक प्रकोप में वह ढहा और बहा देगी। सब उसी में चले जाओगे और तुम्हारा सफाया हो जाऐगा।