आप सब लोगों को, विशेष जरूरी, जो संगत के लिए बातें उसको ध्यान से सुनना हैं। यह संगत बहुत बड़ी हो चुकि है। इस संगत का बहुत बड़ा विस्तार देश में हो रहा चुका है। इसलिए गांव-गांव में, मुहल्ले-मुहल्ले में आप सब लोगों को सत्संग विस्तार मण्डलियां बना लेनी चाहिऐं? इससे यह होगा कि जो नामदानी होंगे वो सब लोग अपने अपने क्षेत्र में एक जगह इकट्ठे होकर ध्यान-भजन का कार्य करेंगे।
इस विस्तार मण्डलियों में प्रत्येक पुरूषों और देवियो को यह ध्यान रखना है कि हम कोई ऐसा काम न कर बैठें जिससे हमारी सेवा, भक्ति और साधना के रास्ते में कलंक लगे। दूसरी सबसे बड़ी चीज दूसरों के पैसों से दूर रहें, दूसरों की कमाई पर दूसरों के पैसों पर कभी विश्वास मत करो कि हम फलेंगे फूलेंगे। दूसरे लोग जो सेवा करते हैं उस सेवा को, अन्न को इसी में लगा देना चाहिऐ। यह ऐसी सेवा है जिसके बोझे को लाद लिया तो तुममें वह सामथ्र्य नहीं है कि इसे सह सको। किसानों की मेहनत नौ-नौ अंगुल दांत। मेरे पास 98 प्रतिशत किसान हैं। ऐसे पसीने का अन्न भजन के द्वारा ही अदा होगा।
जो लोग मोह में या तृष्णावश दूसरों के धन धाम को लेना चाहते हैं उनकी तरफ ध्यान से देखो। हमको देखो। हम हर वक्त काम में लगे रहते हैं चाहे शारीरिक हो, मानसिक हो या आध्यात्मिक हो। आपको ध्यान में रखना चाहिऐ कि जो हमारा राहगीर है, हमें रास्ते पर चलाता है वह कितनी मेहनत करता है। जो लोग सोचते हैं कि किसानों को लूट लेंगे वो नासमझ हैं- यह कभी नहीं हो सकता। जो ऐसा करेगा उसकी सेवा का उसकी सत्यता का उसकी भाव-भक्ति का नाश हो जाऐगा।
संगत बढ़ चुकि है उसकी सीमा बंधकर नहीं रहेगी। उसकी मांग, उसकी डिमाण्ड बहुत बढ़ेगी। इसलिए हमको बहुत बच के रहना है। हम चाहते हैं कि निबंर्धन हो जाऐं, हमारी जीवात्मा कलंकित मत करें। जो लोग मन और इन्द्रियों की खींचतानी में लगे रहते हैं वह अपनी जीवात्मा को गिरा रहे हैं। अशुभ कर्मों में वह बंध गई उसका छुटकारा बिना महापुरूषों के न तो हुआ और न होगा। मन इन्द्रियों को उतना ही ले जाओ जितना जरूरी है। बाकी अपने भाग्य पर छोड़ दो। जो उस पर विश्वास नही करते हैं वो भगवान पर भी विश्वास नहीं करते, उनका धीरज टूट जाता है। वे किसी को कुछ भी कह सकते हैं।
आप बराबर सावधान रहो। आपको चलना है। सत्संग के वचन गिनते रहोगे सम्हालते रहोगे कंगाल की तरह जैसे वह बार बार अपनी गांठ देखता है और गिनता है वैसे ही वचनों को गिनते रहोगे तब बचोगे नहीं तो दुनियांदार तुमको एक सैकेण्ड में गिरा देंगे।
यहां तो अखाड़ा है छल-कपट काम क्रोध का। वचन ही सहारा है बचने का। यह सब चीजें आपको सोचना है। मेरे पास इतना समय तो है नहीं कि रोज रोज हम एक ही बात को बताऐं पर जो वचनों को याद करते हैं उससे उनकी सम्हाल होती है वचनों को याद करने की जरूरत है मनन करते रहो। घर में काम करते हुऐ किस्मत को साइन बोर्ड बनाऐ रहो कि जो मेरे प्रारब्ध में है वह तो मिलेगा ही। मनुष्य को ऐसे कर्मों को जमा करते रहना चाहिऐ जो निर्मल हो पवित्र हो। गन्दे कर्मों को उड़ाने में युग बीत जाता है, समय लग जाता है।