गुरू का ध्यान कर प्यारे । बिना इस के नहीं छुटना ।।
नाम के रंग में रंग जा । मिले तोहि धाम निज अपना ।।
गुरू की सरन दृढ़ कर ले । बिना इस काज नहीं सरना ।।
लाभ और मान क्यों चाहे । पड़ेगा फिर तुझे देना ।।
करम जो जो करेगा तू फ वही फिर भोगना भरना ।।
जगत के जाल में ज्यों त्यों । हटो मरदानगी करना ।।
जिन्होनं मार मन डाला । उन्ही को सूरमा कहना ।।
बड़ा बैरी ये मन घट में । इसी का जीतना कठिना ।।
पड़ो तुम इसही के पीछे । और सबही जतन तजना ।।
गुरू की प्रीत कर पहिले । बहुरि घट शब्द को सुनना ।।
मान लो बात यह मेरी । करें मत और कुछ जतना ।।
हार जब जाय मन तुझसे । चढ़ा दे सुर्त को गगना ।।
और सब काम जग झुठा । त्याग दे इसी को गहना ।।
कहै स्वामी समझाई । गहो अब नाम की सरना ।।