गुरू चरण कमल बलिहारी रे, मेरे मन की दुविधा टारी रे ।। टेक ।।
भव सागर में नीर अपारा, डूब रहा नहीं मिलत किनारा ।
गुरू पल में लीन उबारी रे ।। 1 ।। गुरू चरण कमल बलिहारी रे ।
काम क्रोध मद लोभ लुटेरे, जनम जनम के बैरी मेरे ।
गुरू ने दीन्हा मारी रे, ।। 2 ।। गुरू चरण कमल बलिहारी रे ।
भेद भाव सब दूर कराएं, पूरन ब्रम्ह एक दरषाएं ।
घट घट ज्योति निहारी रे ।। 3 ।। गुरू चरण कमल बलिहारी रे ।
योग युक्ति गुरूदेव बताऐं, सब भक्तन के आनन्द छायें ।
मानुष देह सुधारी रे ।। 4 ।। गुरू चरण कमल बलिहारी रे ।