अब सौप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों मे ।
हे जीत तुम्हारे हाथों मे और हार तुम्हारे हाथों मे ।।१।।
मेरा निश्चय बस एक यही एक बार तुम्हे पा जाऊँ मे ।
अर्पण कर दूँ दुनिया भर का सब प्यार तुम्हारे हाथों मे ।।२।।
यदि जग मे रहूँ तो ऐसे रहूँ ज्यों जल मे कमल का फूल रहे ।
मम अवगुण दोष समर्पित हों भगवान तुम्हारे हाथों मे ।।३।।
यदि मानस का मुझे जनम मिले तब इन चरणोंका मे भक्त बनूं ।
इस भक्त की नस नस रग रग का हो तार तुम्हारे हाथों मे ।।४।।
जब जब संसार का कैदी बनूं निष्काम भाव से काम करुं ।
फिर अन्त समय मे प्राण तजूँ गुरुदेव तुमहारे चरणों मे ।।५।।
मुझ मे तुझ मे बस भेद यही मै नर हूँ तुम नारायण हो ।
मै हूँ सन्सार के हाथों मे सन्सार तुम्हारे हाथो मे ।।६।।
अब सौप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों मे ।
हे जीत तुम्हारे हाथों मे और हार तुम्हारे हाथों मे ।।।।