(सतगुरु बाबा जय गुरुदेव जी महाराज)
बेला अमृत गया, आलसी सो रहा, बन अभागा |
साथी सारे जगे, तू न जागा ||
झोलियाँ भर रहे भाग वाले, लाख पतितों ने जीवन संभाले,
रंक राजा बने, प्रभु रस में सने, कष्ट भागा |
बेला अमृत गया, आलसी सो रहा, बन अभागा |
साथी सारे जगे, तू न जागा ||
प्रभु कृपा से नर तन यह पाया,आलसी बन के यूँ ही गवाया,
उलटी हो गयी मति, कर लई अपनी छति, चोला त्यागा ||
बेला अमृत गया, आलसी सो रहा, बन अभागा |
साथी सारे जगे, तू न जागा ||
स्वांसा एक एक अनमोल बीता,अमृत के बदले विष को तू पीता,
सौदा घाटे का कर हाथ माथे पे धर रोने लागा ||
बेला अमृत गया, आलसी सो रहा, बन अभागा |
साथी सारे जगे, तू न जागा ||
मानव कुछ भी न तुने विचारा, सिर से ऋषियों का ऋण न उतारा,
गुरु का गुण न लिया, गन्दला पानी किया, बन के कागा ||
बेला अमृत गया, आलसी सो रहा, बन अभागा |
साथी सारे जगे, तू न जागा ||