मेरी शिराओं में रक्त बनके,
तुम्हारा नाम प्रवाहित हो
रक्त के प्रत्येक तत्वों में,
तुम्हारा प्रेम समाहित हो
श्रवण इंद्री में हर क्षण ही,
तुम्हारा नाम हो गुंजन
जिह्वा जब भी खुले मेरी,
तुम्हारे महात्म्य का हो वर्णन
नेत्रों कि जहां तक हो परिधि,
दृश्य तुम्हारा लौकिक हो
अंतः पटल पे अंकित हो छवि,
कल्पित हो या भौतिक हो
खुशबू तुम्हारे अस्तित्त्वों की,
नासा मेरी लेती रहे
हो कर बद्घ स्तुति हेतु,
पग ये दर्शन सेती रहे
मन मस्तिष्क चित्त और बुद्धि,
सर्व तुम्हीं से सुहासित हो
तन और तन के तत्व सभी,
तुम हेतु संचालित हो
???? जयगुरूदेव ????
रचनाकार:- प्रेम देशमुख
जयगुरुदेव आवाज़ टीम