मथुरा में पुतला जलवा कर
पल में कर दिया ख़ाक ।
समझ न पाया कोई लेकिन
लाखों रहे थे झांक ।
दुनियां देखे आंखे फाड़
तूम बैठे परदे की आड़
सारी दुनियां में हुआ रे प्रचार
के लीला तेरी तू ही जाने ।
कैसा खेल रे तू खेला आरपार
के लीला तेरी तू ही जाने ।
मर गये मर गये शोर मचा तब
सब की आंखे रोई ।
बड़े बड़े ज्ञानी जो बनते थे
जान सका ना कोई ।
कुछ लोगो की थी ये चाल
जो खाना चाहे तेरा माल
बुद्धि सब ही कि रे हो गयी बेकार
के लीला तेरी तू ही जाने ।
कोई बन बैठा अधिकारी
कोई माला माल।
खेल करोड़ो का कर डाला
बदली रे सबकी चाल।।
माला फेरे है दिन रात
गुरु के संग में करते घात
चेला ना हैं ये तो भेड़िए खूँखार
के लीला तेरी तू ही जाने ।
इनका जो भी हो हमको तो
अपने गुरु से प्यार ।
गुरु की ख़ातिर सब कुछ करने
को हर दम तैय्यार ।।
जिसने मानी तेरी मान
उसकी होगी ना रे हान
उनके आगे तो फीका हैं ये संसार
के लीला तेरी तू ही जाने ।
जिनके पास थी दिन गरीबी
उनको लिया रे संभाल।
जो थे लोभी कामी क्रोधी
सबको दिया रे निकाल।।
मेरी रख ली तुमने लाज
जो हूँ पास तुम्हारे आज
जीवन दिया तुमने मेरा भी सम्भार
के लीला तेरी तू ही जाने ।
सतयुग में देखी हरि लीला
त्रेता में लीला राम।।
द्वापर लीला कृष्ण, कली में
गुरु लीला करे काम।।
सबसे ऊंची गुरु की शान
कोई क्या पाएं पहिचान
कितने आये ऋषी मुनि अवतार
के लीला तेरी तू ही जाने ।
इनका जो भी हो हमको तो
अपने गुरु से प्यार ।
गुरु की ख़ातिर सब कुछ करने
को हर दम तैय्यार ।।
जिसने मानी तेरी मान
उसकी होगी ना रे हान
उनके आगे तो फीका हैं ये संसार
के लीला तेरी तू ही जाने ।
जिनके पास थी दिन गरीबी
उनको लिया रे संभाल।
जो थे लोभी कामी क्रोधी
सबको दिया रे निकाल।।
मेरी रख ली तुमने लाज
जो हूँ पास तुम्हारे आज
जीवन दिया तुमने मेरा भी सम्भार
के लीला तेरी तू ही जाने ।
सतयुग में देखी हरि लीला
त्रेता में लीला राम।।
द्वापर लीला कृष्ण, कली में
गुरु लीला करे काम।।
सबसे ऊंची गुरु की शान
कोई क्या पाएं पहिचान
कितने आये ऋषी मुनि अवतार
के लीला तेरी तू ही जाने ।
मगर मच्छ सब आय फॅसे हैं
मछली भी अटकी जाल।
जिसके सर पर हाथ धरा तू
उनको किया रे निहाल।।
मुट्ठी भर की थी जो बात
तुमने कर लिये अपने साथ
बाक़ी करते ही रहे हैं तक़रार
के लीला तेरी तू ही जाने।
कैसा खेल रे तू खेला आरपार
के लीला तेरी तू ही जाने।।
???? जयगुरूदेव ????
रचनाकार:- प्रेम देशमुख
जयगुरुदेव आवाज़ टीम