मेरे मन को बना लो निजधाम गुरूजी
मेरे मन को बना लो निजधाम
सदा सदा को कर के बसेरा
घट में जगादो निज नाम
गुरुजी मेरे मन को बना लो निजधाम|
ऐसे तो मन मेरा लागे कहि ना
जब जब मनाऊ ये माने कभी ना
पाये कहि ना विश्राम
गुरुजी मेरे मन को बना लो निजधाम।
सुन के बचन भी ना माना कभी ये
अब तक ना पाया ठिकाना कहि ये
इसपे लगा दो लगाम
गुरुजी मेरे मन को बना लो निजधाम।
सतलोक से तुम जो आये जमीं पे
करुणा करी जो ये तुमने हमी पे
तुम को करोड़ो प्रणाम
गुरुजी मेरे मन को बना लो निजधाम।
तुम हम को जानो व हम तुमको
तुम हो तो फिर क्यू किसी को भी माने
हमको तुम्ही से ही काम
गुरुजी मेरे मन को बना लो निजधाम।
एक बार तन मन जो तुमको दिया हैं
जब मान तुमको ही सब कुछ लिया है
फिर कैसे बदले ईमान
गुरुजी मेरे मन को बना लो निजधाम।
तुमसे हैं पहले ना हैं बाद कोई
तुम ही हो सरताज दूजा ना कोई
कोई ना तम्हारे समान
गुरुजी मेरे मन को बना लो निजधाम।
तुम तो समाए मेरे मन के अंदर
कुटियां बना लो चाहे बनवालों मंदर
जैसे हो करलो मुक़ाम
गुरुजी मेरे मन को बना लो निजधाम।
कंकर और पत्थर का झगड़ा ना चाहूँ
जर और जमीं का मैं रगड़ा ना चाहूँ
तुम बिन ना चाहूँ छदाम
गुरुजी मेरे मन को बना लो निजधाम।
ना ओहदेदारी ना हो रिश्तेदारी
सेवक बनालो करू सेवादारी
मुझको इसी में आराम
गुरुजी मेरे मन को बना लो निजधाम|
???? जयगुरूदेव ????
रचनाकार:- प्रेम देशमुख
जयगुरुदेव आवाज़ टीम