तूम जानते हो मुझको
कितना मैं चाहूँ तुझको
मेरी चाहतो से तंग आके
तुमने चेहरा बदल लिया है।।
कितने भी करो बहाने
कितने भी बदल लो बाने
हम भी तेरे दीवाने
आखिर पकड़ लिया है।।
तेरे प्रेम का ये झरना
बहता जो जा रहा हैं
तेरी मीठी दया की धारा
दिल पहिचान पा रहा हैं
मुस्कान तेरे अधरों की
मुझको ये जता रही हैं
मेरी रूह से कोई नाता
हैं मुझ से बता रही हैं
तू माने या माने
मेरे मन मे लगे समाने
तेरी प्रीत डोर ने क्यो
मेरे मन को जकड़ लिया है
आंखे चाहे छुपालो
नजरो का क्या करोगे
जो आवाज दे रहे हैं
उन अधरों का क्या करोगे
बरकत की वो लुटाई
झंडे की वो ऊँचाई
तुम्हे देख के जो रूह को
आराम मिल रहा हैं
उन अरमाँ के फलते फूलते
डेरो का क्या करोगे
युग बीते या ज़माने
कितने भी बदल ठिकाने
पहचान को तुम्हारी
मैने मानस में गढ़ लिया है।।
दुनियां लगे छुपाने
मेरा दिल तो लगे बताने
करने को तुझको हासिल
मैने दुनियां से लड़ लिया है
???? जयगुरूदेव ????
रचनाकार:- प्रेम देशमुख
जयगुरुदेव आवाज़ टीम